आध्यात्मिक विचार लेख-माला-आनंदाचे घर-अ

Started by Atul Kaviraje, August 17, 2022, 08:20:17 PM

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Atul Kaviraje

                               "आध्यात्मिक विचार लेख-माला"
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मित्र/मैत्रिणींनो,

     आज वाचूया, श्री.पांडुरंग नागू  मोरे लिखित, "आध्यात्मिक विचार लेख-माला", या लेख-मालेतील,  "दिव्य  आनंदाचा  झरा", या सदरा-अंतर्गत एक वैचारिक आणि अध्यात्मिक लेख. या लेखाचे शीर्षक आहे.- "आनंदाचे घर"

                                       "आनंदाचे घर"
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आनंदाच्या  घरी , ईश्वराचा  वास  I
सुखाचा  प्रकाश  पदे  तेथे  II

आनंदाच्या  घरा , ज्ञानाची  कवाडे  I
संसाराचे  कोडे  सुटते  पै  II

आनंदाच्या  घरा , सौख्य  हो  साकार  I
अमृताची  धार  वर्षतसे  II

किंबहुना  सोये , जीव  आत्म्याची  लाहे  I
तेथ  जे  होये , तया  नाम  सुख  II

     आनंदाचे  घर  तुम्हास  हवे  ? तर  मग  आपल्या  ठायी  असणाऱ्या  आत्मस्वरूपाची  ओळख  करून  घ्याचं . त्याची  एकदा  जाणीव  झाली  की , साऱ्या  विश्वात  विस्तारलेल्या  परतत्त्वाची  आपोआप  प्रचिती  येते . तुम्ही  त्याच्याशी  एकरूपता  अनुभवू  शकता . तुमचे  मन  विशाल  होते  व , ते  तुमचे  व्यक्तिमत्त्व  आमूलाग्र  बदलून  टाकते . तुमच्या  व्यक्तिमत्त्वाचा  प्रत्येक  अणुरेणू  परब्रह्माच्या  विश्वातील  रूपाशी  तादात्म्य  पावतो  व  तुम्ही  अलौकिक  सामर्थ्याचे  धनी  होऊ  शकता . असे  झाल्यावर  तुमची  वृत्ती  , तुमची  प्रत्येक   कृती  पारदर्शक  होते  . तुम्ही  निष्कलंक  , शालीन  व  लीन  बनता .

     जीवनात  सुखाचे  मार्ग  सांगितले  आहेत  ते  असे --

1) नियती  घटना  घडविते  , त्याकडे  साक्षीभावाने  पाहणे .

2) आपण  केवळ  वर्तमान  काळातच  राहण्याचा  प्रयत्न  करावा .

3) साधी  राहणी  ठेवावी .

     ईश्वरावर  पूर्ण  विश्वास  असावा .

     आपले  जीवन  आपल्या  संकल्पाने  चालत  नसून  ते  ईश्वराधीन  आहे , ही  निर्विवाद  गोष्ट  आहे . ( व  ती  आपण  खऱ्या  सुखासाठी  स्वीकारली  पाहिजे  ) कारण  तसे  नसते  तर  जगात  दुःख  कोणासच  झाले  नसते . ज्या  घटना  आपल्या  जीवनात  घडतील  त्यात  समाधान  मानून  राहणे  ही ईश्वराधीन  जीवन  जगण्याची  गुरुकिल्ली  आहे . यासाठी  रोज  परिश्रम  करून  संधी  मिळेल  तसे  विधायक  उद्योग  करावेत . दैवाला  दोष  न  देता , शुद्ध    व  उपयुक्त  वातावरणात  राहण्याचा  प्रयत्न  करावा .मानसिक  उन्नती  साधावी . शरीर  व  मन  कटाक्षाने  अत्यंत  पवित्र  ठेवावे . म्हणजे  सामर्थ्य  आपोआप  येते . शुद्ध  व  उपयुक्त  आहार  , आरोग्याच्या  नियमांना  अनुसरून  राहणी , खेद  व  खंतीचा   अभाव  अशी  जीवनातील  भूमिका  तयार  करावी . आपले  मन  हे  अमृत  तडाग  आहे .तसेच  ते  अत्यंत  घाणेरडे  नरककुंड  पण  आहे  . याची  जाणीव  ठेवून  मनातील  सर्व  घाण  काढून  टाकून  ते  एक  पवित्र  मंदिर  करावे . मनाची  प्रवृत्ती  अधोगतीची  स्वभावातच  असते  व  ते  अति  चंचल  असते . यासाठी  त्यावरील  स्पंदने  उपयुक्त  कशी  ठरतील  ते  कटाक्षाने  पहावे .

     " TO DO ONE'S DUTY WITH PERSERVERANCE AND ENTHUSAISM,TO OFFER A HELPING HAND AND TO DO SOMETHING GOOD FOR OTHERS WITHOUT HARMING ANYONE IS THE HIGHEST DEGREE OF DEVOTION AND SACRIFICE.EACH PERSON SHOULD LEARN TO LIVE AN HONEST LIFE AND CONCENTRATE ON MAKING HIS FELLOW BEINGS HAPPY INSTEAD OF CAUSING SORROW TO MANKIND. "

--श्री.पांडुरंग नागू  मोरे
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                       (साभार आणि सौजन्य-संदर्भ-इ साहित्य.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-17.08.2022-बुधवार.