कथा-लेख मालिका-एक उनाड प्रवास...

Started by Atul Kaviraje, August 17, 2022, 08:25:32 PM

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Atul Kaviraje

                                    "कथा-लेख मालिका"
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मित्र/मैत्रिणींनो,

     आज वाचूया, श्री.संदीप  हरिशचंद्र  यादव लिखित, "कथा-लेख मालिका", या लेख-मालेतील, "आयुष्य  गिरवताना" या विषया-अंतर्गत  एक कथा  लेख. या लेखाचे शीर्षक आहे.- "एक  उनाड  प्रवास ..."

                                   "एक  उनाड  प्रवास ..."
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     " मुंबई  सेंट्रल  स्थानकात  आपले  स्वागत  आहे ", या  उद्घोषणेने  किती  छान  वाटले . दिल्ली  राजधानी  एक्सप्रेस   पोहोचली  एकदाची , मायदेशी  आल्यासारखे  वाटले ...ऑफिसचे  महत्त्वाचे  पेपर्स  घेण्यासाठी  ऑफिस  बॉय  आला  होता  स्टेशनवर . ६० -६५  वर्षांचा  तरुण  बॉयच  म्हणावा  लागेल ...साहेब  पेपर  द्या , आणि  पुढल्याच  क्षणी  तो  तरुण  पेपर  घेऊन  गर्दीत  दिसेनासा  झाला ...

     लाज  वाटली  स्वतःचीच , धिक्कार  असो  या  शिक्षणाचा  , आणि  या  मोठेपणाचा ...वडिलांच्या  वयाच्या  माणसाने  साहेब  बोलावे  यासारखा  दुसरा  अपमान  नाही . मुळात  संस्कार  हे  मान्यच  करू  देत  नाहीत ...

     ओला , उबेर  पेक्षा  आज  एसटी  ने  प्रवास  केला  तर  पनवेलपर्यंत ...बराच  काळ  लोटला  एसटीने  प्रवास  करून , सो  कौल्ड  हाय  फाय झालंय  लाईफ  आता ...

     बघता  बघता  दापोली  बस  निघाली , एक  पनवेल  द्या , तुम्ही  पण  पनवेल  ?

     पनवेल  नंतर  एसटी  रिकामी  जाण्याची  चिंता  त्यांच्या  चेहऱ्यावर  स्पष्ट  दिसत  होती , किती  ही  निष्ठा  त्याची  कामावर ....खरंच  लाखभर  रुपये  पगार  घेऊनही  आपण  करतो  का  आपल्या  कंपनीचा  इतका  विचार  ?

     एव्हाना  गाडी  कुर्ला  नेहरू  नगर  आवारात  पोहोचली ,  गाडी  दहा  मिनिटे  थांबेल  एव्हढे  बोलून  कंडक्टर  स्वारी  पाठमोरी  जाताना  दिसली . बघता  बघता  गाडीत  फेरीवाल्यांची  जत्रा  भरली ...वडा-  पाव , वेफर्स , गोळ्या , बिस्किट्स , पाणी  बाटली , कलिंगड ...एकापेक्षा  एक  जोरात  आवाज  येऊ  लागले . 

     एक  फेरीवाला  फारच  काकुळतीला  आला  होता ,साहेब  काहीतरी  घ्या  हो ....शेंगदाणे ,चणे  , वेफर्स  ,पौपकोर्न ....पैसे  कमावण्याची  त्याची  धडपड  स्पष्ट  दिसत  होती ....नकळत  खिशात  हात  गेला . खरंच  किती  अवघड  आहे  गरिबाला  साधे  १० -२०  रुपये  कमावणे ....

     एव्हाना  गाडी  बऱ्यापैकी  भरत  आली  होती , कंडक्टर  स्वारीचा  चेहरा  आता  खुलला ...वाशी   टोलनाका  पार  केला  तसा  ड्राइव्हर  आणि  कंडक्टरच्या  गप्पा  रंगू  लागल्या ...गाडी  एकदाची  दापोली  आगारात  पोहोचली , की  मग  जाऊयात  राव  समुद्रावर , बायकोने  सकाळी  पाचला  उठून  पोळ्या  दिल्यात  बांधून ....हाणुयात  बीचवर  बसून  राव , आपण  पण  कधी  मजा  करायची  ? कंडक्टरच्या  अनुमोदनाचा  लगेच  स्वीकार  झाला  ड्राइव्हरकडून .

          मला   नकळत   प्रशांत  दामलेंच्या  नाटकाच्या   ओळी  आठवल्या ...." सुख  म्हणजे  नक्की  काय  असते , काय  पुण्य  केलं  की  ते  घरबसल्या  मिळते "

     बघता  बघता  कधी  पनवेल  आलं  ते  कळलेच  नाही , बऱ्याच  गोष्टी  शिकलो  या  दोन  तासांच्या  प्रवासात ....

     आता  केव्हा  एकदा  घरी  पोहचून  पाखरांना  कवेत  घेतोय  असे  झाले ....

श्री.संदीप हरिशचंद्र यादव
लेख दिनांक-३१.०३.२०१७
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                       (साभार आणि सौजन्य-संदर्भ-इ साहित्य.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-17.08.2022-बुधवार.