मला आवडलेल्या चारोळ्या-चारोळी क्रमांक-56

Started by Atul Kaviraje, August 24, 2022, 01:05:21 AM

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Atul Kaviraje

                                  मला आवडलेल्या चारोळ्या
                                     चारोळी क्रमांक-56
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मित्र/मैत्रिणींनो,

     --जीवन  म्हणजे  काय  आहे , मरण  म्हणजे  काय  आहे , जीवन  कसं  जगायचं , त्यात  काय  रहस्ये  भरलेली  आहेत , आदी  अनेक  अनाकलनीय , न  उलगडणारे  प्रश्न  या  प्रस्तुत  चारोळीतून , नवं -चारोळीकारास  पडलेले  आहेत . जन्म-मृत्यूच्या  या  न  संपणाऱ्या  गुंत्यात , तो  आजही  गुरफटून  गेला  आहे . या  प्रश्नाचे  उत्तर  त्याचेकडे  नाही . म्हणून  तो  प्रश्न  त्याने  आपल्यापुढे   उपस्थित  केला  आहे . त्याचे  मन  राहून  राहून  या  फेऱ्यातच  अडकलेले  आहे. " आयुष्यावर  बोलू  काही ", ही  संदीप  खरे  यांची  आयुष्यावरली  कविता  ऐकूनही  त्याचे  समाधान  झालेले  नाही .

     पुढे  त्याने  ही  जन्म-मरणाची, आयुष्याची  उकल  करण्यास  काही  विशेषणांची  मदत  घेतली  आहे . तो  म्हणतोय , दिवस-रात्रीचे  हे  चक्र  अचूक , अगदी  न  चुकता  अव्याहतपणे  सुरु  आहे . त्यात  काहीही  खंड  नाही . हा  दिवस  रोज  उगवतो , तद्वत  रात्रही  रोज  येते . हे  सारे  रोज-रोज  पुन्हा  पुन्हा  नव्याने  घडते . रोज  रात्री  उगवणारे  चांदणेही  या  रात्रीप्रमाणेच  रोज  नवीनच  उगवते . प्रत्यक्षात  चांदणे  हे  तेच  असले  तरी   रोज  नव्याने  उगवणाऱ्या  रात्रीमुळे  तेही  नवीनच  वाटते .

     पुढे  तो  अंतर्मुख  होऊन  विचार  करतोय , व  हा  जटील  प्रश्न  उपस्थित  करतोय , हे  सारे  जुने  असले  तरी  पुन्हा  पुन्हा  ते  नवीन  का  बरं  वाटतं  ? मग  या  जीवन-मरणाच्या  फेऱ्याचं  काय  ? या  आयुष्याचं  काय  ? ते  का  बरं  एकदाचं  मिळतं  ? ते  पुन्हा  पुन्हा  का  बरे  मिळतं  नाही  ? असं  काय  गूढ  आहे  यात , की  माणूस  मेल्यानंतरही  पुन्हा  नव्याने  जन्म  का  घेत  नाही  ? का  नाही  तो  अमर  होऊ  शकत ? का  त्याला  जीवन , हे  आयुष्य  एकदाचं  मिळतं  ? बाकी  सारं  शाश्वत  आहे , पण  मग  माणसाचे  जीवनाचं  हे  अशाश्वत  का ? ते  पुन्हा  फिरून  का  प्राप्त  होत  नाही  ? पुन्हा  ते  नव्याने  का  आकार  घेऊ  शकत  नाही ? तो  पुढे  विचारतोय , की  कुणी  मला  या  माझ्या  प्रश्नाचे  उत्तर  देईल  का  ? या  कठीण  प्रश्नाची  उकल  कुणी  करील  का  ? यातील  गूढ  अर्थ  कुणी  मला  सोपा  करून  सांगेल  का ? हा  नवं-चारोळीकार  अजूनही , आजही  या  प्रश्नाच्या  कश-मकश  मध्ये  अडकलेला  आहे . उत्तर  मिळेपर्यंत  त्याची  वाट  पहाण्याची  तयारी  आहे . पण  या  आयुष्याचे  काय  ? ते  तर  कधीच  थांबत  नाही !

चांदणं तेच असलं तरी,
रात्र अगदी नवीन आहे,
आयुष्य मात्र एकदाच का?
हा प्रश्न जरा कठीण आहे...
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--नवं-चारोळीकार
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                        (साभार आणि सौजन्य-मराठी नेतृत्व.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-24.08.2022-बुधवार.