वर्षा ऋतु कविता-कविता-पुष्प-37-बरखा

Started by Atul Kaviraje, August 29, 2022, 11:00:49 AM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

                                    "वर्षा ऋतु कविता"
                                     कविता-पुष्प-37
                                   -----------------

मित्रो,

     आईए मित्रो, सुनते है, पढते है, इस मन-भावन वर्षा ऋतू की कुछ सर्वोत्तम रचनाये. कविता-कोश आपके लिये लाये है, नवं-कवी, श्रेष्ठ कवी, सर्व-श्रेष्ठ कवी, नामचीन-नामांकित, कवी-कवयित्रीयोकी मन-भावन कविताये, रचनाये जिसे पढकर आपका मन आनंद-विभोर हो जायेगा, पुलकित हो जायेगा, उल्हसित हो जायेगा. इन  कविताओकी हल्की, गिली बौछारे आपके तन-मन को भिगो कर एक सुखद आनंद देगी, जो आपको सालो साल याद रहेगी. आईए, तो इन बरसते-तुषारो मे भिग कर कविता का अनोखा आनंद प्राप्त करते है.

                                       "बरखा"
                                      --------

पंख पसारे बदली रानी,
चुनरी ओढ़े श्यामल-धानी;
आंचल-पट पर दृश्य जगत के,
अमित कामिनी छल-छल छलके;
वसन जो उघरे हिय ललचाए,
ले अंगड़ाई सब अलसाए;
स्निग्ध बदन को नज़र जो छुए,
गड़ी शरम से खिल गए रोएँ;
               फिर मत पूछो कैसे पिघली,
                       लगी छलकने, ज्यों नभ-बिजली.....

घुमड़े चहुंदिक घन घनघोर,
म्याऊं-म्याऊं बिदके वन-मोर;
'पिया-पिया' पपीहा गुहारे,
राग कहरवा गाएँ सारे;
कोयल गाती कुहकुन की धुन,
दादुर छेड़े रेशमी गुंजन;
ओढ़ लिए सबने तन-मन पर,
झींगुर के झुन-झुन की चादर;
               ऐसे में बूंदों की सखियाँ,
                     मल्हारी बारात ले चलीं.....

पेंग मारती चहकी गोरी,
रिम-झिम प्रीत की फैली डोरी;
गात चूमने लपके बादल,
आँख मारती दामिनी विह्वल;
आवारा हो गईं हवाएं,
आली! इनको कौन मनाए;
उमर लांघ आए तन-मन सब,
कौन बताए हुए जवां कब;
                ऐसे में आ-मिल छलकाएं,
                      कण्ठ-नाद से बरखा-कजली......

--मनोज श्रीवास्तव
(रचना-काल: १९-५-१९९५)
-------------------------

                                  (संदर्भ-श्रेणी:वर्षा ऋतु)
                      (साभार एवं सौजन्य-कविताकोश.ऑर्ग/के.के.)
                     -----------------------------------------

-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-29.08.2022-सोमवार.