वर्षा ऋतु कविता-कविता-पुष्प-38-बरसत बरषा परम सुहावन

Started by Atul Kaviraje, August 30, 2022, 09:05:41 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

                                     "वर्षा ऋतु कविता"
                                      कविता-पुष्प-38
                                    -----------------

मित्रो,

     आईए मित्रो, सुनते है, पढते है, इस मन-भावन वर्षा ऋतू की कुछ सर्वोत्तम रचनाये. कविता-कोश आपके लिये लाये है, नवं-कवी, श्रेष्ठ कवी, सर्व-श्रेष्ठ कवी, नामचीन-नामांकित, कवी-कवयित्रीयोकी मन-भावन कविताये, रचनाये जिसे पढकर आपका मन आनंद-विभोर हो जायेगा, पुलकित हो जायेगा, उल्हसित हो जायेगा. इन  कविताओकी हल्की, गिली बौछारे आपके तन-मन को भिगो कर एक सुखद आनंद देगी, जो आपको सालो साल याद रहेगी. आईए, तो इन बरसते-तुषारो मे भिग कर कविता का अनोखा आनंद प्राप्त करते है.

                                "बरसत बरषा परम सुहावन"
                               --------------------------

रिमझिम रिमझिम बरस रहा है,ये आया सखि सावन ॥
बादर उमड़ी घुमड़ी सखि छाये, दादुर कोयल गीत सुनाये ।
नांचत मोर पिहूँ पी रटि रटि, मौसम सुन्दर उर मन भावन ॥
दामिनी दमकत चमकत चम-चम, नांच रही परियां सखि छम-छम ।
साज बाज सुर ताल राग रंग,गंध्रिप* लगे गुनी जन गावन ॥
नाना पक्षी हंस चकोरा, हरन करत मन चातक मौरा ।
ये वृन्दावन लहर निराली, यमुना गंगा अनुपम पावन ॥
कहे शिवदीन मनोहर जोरी, कृष्ण राधिका चन्द्र चकोरी ।
धन्य-धन्य वृजराज छटा छवि, वृजजन जन के मन हर्षावन ॥

--शिवदीन राम जोशी
-*गन्धर्व
--------------------

                                (संदर्भ-श्रेणी:वर्षा ऋतु)
                    (साभार एवं सौजन्य-कविताकोश.ऑर्ग/के.के.)
                   -----------------------------------------

-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-30.08.2022-मंगळवार.