वर्षा ऋतु कविता-कविता-पुष्प-43-बादल आए गोल बाँधकर

Started by Atul Kaviraje, September 04, 2022, 08:44:29 PM

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Atul Kaviraje

                                    "वर्षा ऋतु कविता"
                                     कविता-पुष्प-43
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मित्रो,

     आईए मित्रो, सुनते है, पढते है, इस मन-भावन वर्षा ऋतू की कुछ सर्वोत्तम रचनाये. कविता-कोश आपके लिये लाये है, नवं-कवी, श्रेष्ठ कवी, सर्व-श्रेष्ठ कवी, नामचीन-नामांकित, कवी-कवयित्रीयोकी मन-भावन कविताये, रचनाये जिसे पढकर आपका मन आनंद-विभोर हो जायेगा, पुलकित हो जायेगा, उल्हसित हो जायेगा. इन  कविताओकी हल्की, गिली बौछारे आपके तन-मन को भिगो कर एक सुखद आनंद देगी, जो आपको सालो साल याद रहेगी. आईए, तो इन बरसते-तुषारो मे भिग कर कविता का अनोखा आनंद प्राप्त करते है.

                               "बादल आए गोल बाँधकर"
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बादल आए
गोल बाँधकर
नभ में छाए
सूरज का मुँह रहे छिपाए
मैंने देखा :
इन्हें देख गजराज लजाए-
इनके आगे शीश झुकाए-
बोल न पाए
बादल आए
बरखा के घर साजन आए
जल भर लाए
झूम झमाझम बरस अघाए
मैंने देखा;
प्रकृति-पुरुष सब साथ नहाए,
नहा-नहाकर अति हरसाए-
ताप मिटाए

--केदारनाथ अग्रवाल
रचनाकाल: २५-०७-१९७६,बाँदा
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                               (संदर्भ-श्रेणी:वर्षा ऋतु)
                    (साभार एवं सौजन्य-कविताकोश.ऑर्ग/के.के.)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-04.09.2022-रविवार.