वर्षा ऋतु कविता-कविता-पुष्प-51-बारिश

Started by Atul Kaviraje, September 12, 2022, 10:43:56 AM

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Atul Kaviraje

                                   "वर्षा ऋतु कविता"
                                     कविता-पुष्प-51
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मित्रो,

     आईए मित्रो, सुनते है, पढते है, इस मन-भावन वर्षा ऋतू की कुछ सर्वोत्तम रचनाये. कविता-कोश आपके लिये लाये है, नवं-कवी, श्रेष्ठ कवी, सर्व-श्रेष्ठ कवी, नामचीन-नामांकित, कवी-कवयित्रीयोकी मन-भावन कविताये, रचनाये जिसे पढकर आपका मन आनंद-विभोर हो जायेगा, पुलकित हो जायेगा, उल्हसित हो जायेगा. इन  कविताओकी हल्की, गिली बौछारे आपके तन-मन को भिगो कर एक सुखद आनंद देगी, जो आपको सालो साल याद रहेगी. आईए, तो इन बरसते-तुषारो मे भिग कर कविता का अनोखा आनंद प्राप्त करते है.

                                       "बारिश"
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तुम सुनोगे उसे, जगते हुए, पंखे की ग़रज में
सूखे नारियल के पत्तों की सरसराहट में, कंकरों में
जो किसी लॉरी से धूल भरी गली में डल रहे हैं
तुम सुनोगे उसे रात के अंतिम विमान में
(जिसकी ध्वनि बादलों की ग़रज सी होगी)
पक्षियों की वर्णमालाओं में, और गुस्से से भरे प्रेशर कुकरों में

तुम ढूँढोगे उसे शाम में, विराट छायाओं में,
किसी एक बादल की खोज में,
और रात में,
जब वह कहीं बहुत दूर से आकर
शहर को एक नयी रौशनी से स्पर्श कर सकती है।

तुम्हें नहीं मिलेगी वह मार्च के बचे हुए धूसर पत्तों में
या दुबले सुर्ख़ अर्धचंद्राकार के पीछे जो
आकाश के किसी ज्वरित टुकड़े पर
ख़ुद को जला रहा है।
दिन की ख़ुश्क गर्मी से
तुम्हारे बालों में बिजली दौड़ जायेगी
मानसून की रातों की रजत बिजलियों से तुम्हारे स्वप्न
बिंध जायेंगे, वे नीली हरी रातें
झींगुर जिनका उत्सव मनाता है, वे पहाड़ी रातें जिन्में
भाग्य छतरियों से जुड़ा है

लेकिन यहां वीनस की आंख एकदम स्वच्छ है
रात में तुम रेफ्रिजरेटरों में ढूंढोगे उसे,
उसके ज़ायके को अपनी जीभ पर लिये खरबूजे काटोगे -
संवेदनशून्य लाल हृदय का फल – और दुख में खीरे खरीद लाओगे
तुम धुंध के नैराश्य को करीबन भूल जाओगे, लेकिन याद रखोगे
कितनी जल्दी आईने और गलियां निष्ठुर हो जाते थे
और प्रतीक्षा करोगे कि फिर उसी कम्बल को आसमान में तान
इस सख्त और अचल रोशनी का स्वभाव बदल दिया जाय

तुम कहाँ हो का 'कहाँ' सिर में एक ऐसी ज़गह है
जो त्वचा से तय होती है, और तुम पता पहचानते हो
नाम और नम्बर से नहीं, किसी परिचित ताने बाने से
पत्तियों की गति, ट्रैफिक और गलियों से

और जब तुम चले जाते हो, केवल लिफाफे बातें करते हैं
उस शहर की जहां अब तुम रहते हो
क्योंकि अपेक्षाएं जस-की-तस बनी रहती है इन्द्रियों में
सालों बनी रहती हैः सूखी हवाओं से बौराये अप्रैल में
बारिश को तरसती

--अंजुम हसन
मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद : तेजी ग्रोवर
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                                (संदर्भ-श्रेणी:वर्षा ऋतु)
                     (साभार एवं सौजन्य-कविताकोश.ऑर्ग/के.के.)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-12.09.2022-सोमवार.