कविता पावसाच्या-कविता-पंचावन्नावी-श्रावण सरी

Started by Atul Kaviraje, September 14, 2022, 01:01:21 PM

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Atul Kaviraje

                                     "कविता पावसाच्या"
                                      कविता-पंचावन्नावी 
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मित्र/मैत्रिणींनो,

     प्रत्येकाला हवाहवासा वाटणारा पाऊस यावर्षी अगदी सुरुवातीलाच मनसोक्त बरसला आणि या पावसाला साजेशा कविताही कविमनातून उत्स्फूर्तपणे प्रगटल्या. प्रत्येकाला हवाहवासा वाटणारा पाऊस यावर्षी अगदी सुरुवातीलाच मनसोक्त बरसला आणि या पावसाला साजेशा कविताही कविमनातून उत्स्फूर्तपणे प्रगटल्या. महाराष्ट्राला सुखावणा-या या पावसावर दै. 'प्रहार'ने 'बालकवी' पुरस्कारासाठी कवींना 'पाऊस' या विषयावर कविता पाठवण्याची एक अनोखी संधी दिली आहे. पावसावरील अशाच काही निवडक कविता आम्ही आपणा वाचकांसाठी क्रमश: प्रसिद्ध करत आहोत.

                                       "श्रावण सरी"
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सरीवर सरी श्रावणसरी
धरणीमातेने पांघरला
हिरवा शालू भरजरी।। धृ।।

ऐका पंचमहाभुतांची किमया
पृथ्वी, आप, तेज, वायू,
आकाश लीलया
कसा योग जुळून येतो या दुनिया
श्रावण धारा बरसती धरणीवरी
श्रावण सरी, श्रावण सरी।। १।।

नदी-नाले तुडुंब भरूनी वाहती
फुलपाखरू मनसोक्त बागडती
पक्षी किलबिलाट करती
मयूर पिसारा फुलवती
श्रावण धारा बरसती धरणीवरी
श्रावण सरी, श्रावण सरी।। २।।

नानाविध फुले उमलती
ऊन-सावल्या नाच करती
इंद्रधनू नभाला तोरण बांधती
चहूकडे माणिक मोती बरसती
श्रावण धारा बरसती धरणीवरी
श्रावण सरी, श्रावण सरी।। ३।।

असेच व्हावे सदा श्रावणाचे आगमन
निसर्गाच्या सान्निध्यात रोज करावे भ्रमण
मन:शांती मिळे आत्मा होई प्रसन्न
जीवन होईल शतायुषी कदापि न मरण
श्रावण धारा बरसती धरणीवरी
श्रावण सरी, श्रावण सरी।। ४।।

--डॉ. जनार्दन महिसरे, नवीन पनवेल
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                          (साभार आणि सौजन्य-संदर्भ-प्रहार.इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-14.09.2022-बुधवार.