नरेंद्र गोळे-कविता-धनंजयास

Started by Atul Kaviraje, September 18, 2022, 09:38:50 PM

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Atul Kaviraje

                                      "नरेंद्र गोळे"
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मित्र/मैत्रिणींनो,

     आज वाचूया, श्री नरेंद्र गोळे यांच्या "नरेंद्र गोळे" या ब्लॉग मधील एक कविता. या कवितेचे शीर्षक आहे- "धनंजयास"

                          धनंजय सखाराम डोंगरे-धनंजयास--
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प्रदीर्घ संघ साधना तुझी कृतार्थ जाहली
कितीक व्यक्ति जोडल्या कितीक माणसे भली ।
तुझेच नाव घेत ते स्मृती खुशाल सांगती
धनंजया सदा स्मरेन साथ सर्व ही तुझी ॥१॥

तुझेच जावई भले तुझी मुले सुना मुली
तुझीच नातवंडही करीत आठवे तुझी ।
मलाहि पाठिशी तुझाच धीर मागता न मी
धनंजया सदा स्मरेन साथ सर्व ही तुझी ॥२॥

खडे कडे चढूनही गिरीस सह्य पाहिले
हिमाद्रि पर्वतात पार्वती नदीस देखले ।
मिळून अंदमानिही समुद्र धुंडले तळी
धनंजया सदा स्मरेन साथ सर्व ही तुझी ॥३॥

यथार्थ साथ पत्निही कितीक माणसे तुझी
तुझीच संस्कृती जगात आजही प्रसारती ।
सदा सुहास्य बोलके सहाय्य दे न बोलुनी
धनंजया सदा स्मरेन साथ सर्व ही तुझी ॥४॥

कृतार्थ याद राहिली जरी न राहिलास तू
इथे न राहते कुणी मनात राहिलास तू ।
तिथे तुला मिळो गती सदा सदाच चांगली
धनंजया सदा स्मरेन साथ सर्व ही तुझी ॥५॥

--नरेंद्र गोळे
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                  (साभार आणि सौजन्य-एन.व्ही.गोळे.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
                                (संदर्भ-मराठी ब्लॉगर्स.नेट)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-18.09.2022-रविवार.