आइयें गुनगुनाये शौक से-आपके राज्य में क्या खास है ?--क्रमांक-5

Started by Atul Kaviraje, September 20, 2022, 09:05:37 PM

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Atul Kaviraje

                                  "आइयें गुनगुनाये शौक से"
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मित्रो,

     आज पढते है, "आइयें गुनगुनाये शौक से" यह ब्लॉगका एक लेख . इस लेखका शीर्षक है-"आपके राज्य में क्या खास है ?"

                       आपके राज्य में क्या खास है ?--क्रमांक-5-- 
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                              ९. मेरठ- डॉ उषा किरण--

                    औघड़नाथ मंदिर--

     उत्तर-प्रदेश का शहर मेरठ मुझे बेहद पसन्द है । कारण ये कि न तो ये दिल्ली मुम्बई जितना बड़ा है और न ही बहुत छोटा है। यहाँ पर जाट व मुस्लिम बहुल आबादी का असर बोल-चाल व संस्कृति पर दिखाई देता  है। चिकित्सा सुविधा हेतु अच्छे हॉस्पिटल व मेडिकल कॉलेज हैं । मेरठ शिक्षा के लिहाज से भी काफी सम्पन्न है।

     कहते हैं कि मन्दोदरी मेरठ की थीं अत: इसे  रावण की ससुराल भी कहते हैं।। यहाँ एक प्राचीन शिव- मन्दिर भी है जो मन्दोदरी का मन्दिर कहलाता है। कहते हैं कि यहाँ की मिट्टी में कुछ ऐसा असर है कि श्रवण कुमार ने भी हरिद्वार ले जाते हुए अपने माँ- बाप की काँवड़ मेरठ आते ही पटक दी थी,  खैर लगता है ये किंवदंती किसी ने मजाक में ही बनाई होगी मेरठवासियों के अक्खड़पने को देख कर ।

                    औघड़नाथ मन्दिर अन्दर से--

     मेरठ की चाट, कुल्फी, दिल्ली वाले के छोले- भटूरे, राधे के छोले व कुल्चे आदि बहुत टेस्टी होते हैं।मेरठ जैसी टेस्टी चाट तो कहीं की नहीं होती।इसके अतिरिक्त यहाँ की रेवड़ी गजक भी बहुत स्वादिष्ट होती है। हर साल यहाँ पर मशहूर नौचंदी मेला भी लगता है जिसमें अनेक शहरों से दुकानें आती हैं।

                           नौचंदी मेला--

     दिल्ली पास होने के कारण प्राय: स्टुडेंट्स कोचिंग व पढ़ाई हेतु दिल्ली जाते हैं । दिल्ली के फैशन , रहन-सहन, कला व संस्कृति का असर भी मेरठ पर दिखाई पड़ता है। लेकिन सबसे ज्यादा मेरठवासी जिस बात पर गर्व करते हैं वो है बाबा औघड़नाथ शिव मंदिर , जो एक प्राचीन सिद्धिपीठ है। इस मन्दिर में स्थापित लधुकाय शिवलिंग स्वयंभू, फलप्रदाता तथा मनोकामनायें पूर्ण करने वाले औघड़दानी शिवस्वरूप हैं। इसी कारण इसका नाम औघड़नाथ शिव मन्दिर पड़ गया। परतन्त्र काल में भारतीय सेना को काली पल्टन कहा जाता था। यह मन्दिर काली पल्टन क्षेत्र में स्थित होने से काली पल्टन मन्दिर के नाम से भी विख्यात है।

     जनश्रुति के अनुसार, यह मन्दिर सन् 1857 से पूर्व ख्याति प्राप्त श्रद्धास्पद वन्दनीय स्थल के रूप में विद्यमान था। भारत के प्रथम स्वातन्त्रय संग्राम (1857) की भूमिका में इस देव-स्थान का प्रमुख स्थान रहा है। सुरक्षा एवं गोपनीयता के लिए उपयुक्त शान्त वातावरण के कारण अग्रेजों ने यहाँ सेना का प्रशिषण केन्द्र स्थापित किया था वीर मराठों के समय में अनेक प्रमुख पेशवा विजय यात्रा से पूर्व इस मन्दिर में उपस्थित होकर बड़ी श्रद्धा से प्रलयंकर भगवान शंकर की उपासना एवं पूजा किया करते थे।

     मंदिर में 1857 के विद्रोह के शहीदों को सम्मान देने के लिए बनाया गया एक स्मारक भी है।  यह वह स्थल है जहां 1857 के युद्ध के सैनिकों ने अपने ऑपरेशन की योजना बनाई थी। एक संत यहां रहते थे जिन्होंने भारतीय सैनिकों से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करने के लिए प्रेरित किया था।10 मई 1857 को, भारतीय नागरिकों ने अंग्रेजों से आजादी के लिए इस स्थान पर शपथ ली थी।

     भारतीय पल्टनों के निकट होने के कारण इस मन्दिर में अनेक स्वतंत्रता सेनानी आते, ठहरते तथा भारतीय पल्टनों के अधिकारियों से गुप्त मन्त्रणायें भी किया करते थे। इनमें हाथी वाले बाबा अपना विशिष्ट स्थान रखते थे। कहते हैं कि वह धूधपंत नाना साहब थे।मन्दिर के प्रांगण में स्थित कुएँ पर सेना के जवान पानी पीने के लिए आते थे। 1856 में बंदूकों के नये कारतूसो का आगमन भी स्वतंत्रता के प्रथम आन्दोलन का प्रधान कारण बना। इस कारतूसो का प्रयोग करने से पहले मुख से खोला जाता था, जिसमें गाय की चर्बी लगी रहती थी जिसकी वजह से मन्दिर के तत्कालीन पुजारी ने सेना के जवानों को पानी पिलाने से मना कर दिया। अतः निर्धारित 31 मई से पूर्व ही उत्तेजित सेना के 85 जवानों ने 10 मई 1857 को अंगेजों के विरूद्ध क्रान्ति का बिगुल बजा दिया। उनके कोर्ट मार्शल के बाद क्रांतिकारियों ने उग्र रूप अख्तियार कर लिया।

     औघड़नाथ मंदिर हमारी संस्कृति और परंपराओं की धरोहर है। इसमें वस्तुत: तीन  मंदिर हैं, मुख्य तो भगवान शिव का मंदिर है और हाल ही में निर्मित श्री कृष्ण मंदिर और देवी माँ का मन्दिर भी है।बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस मंदिर में आस्था रखते हैं। शिव रत्रि पर भारी संख्या में कांवड़िये यहाँ जल चढ़ाते हैं।

     किसी समय पर यहाँ पर साम्प्रदायिक दंगे बहुत होते थे परन्तु अब लोगों ने मिलजुल कर रहना सीख लिया है तो बरसों से शान्ति है।ईश्वर करे कि मेरी मेरठ नगरी की  शान्ति और सौहार्द यूँ ही बना रहे।
-- डॉ उषा किरण

--प्रस्तुति-ऋता शेखर 'मधु'
(April 15, 2022)
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                (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-गायें-गुनगुनाये.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-20.09.2022-मंगळवार.