शिखा कौशिक-कविता-अब तो तस्वीर बदलनी चाहिए

Started by Atul Kaviraje, September 20, 2022, 09:10:28 PM

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Atul Kaviraje

                                      "शिखा कौशिक"
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मित्रो,

     आज पढते है, "शिखा कौशिक" यह ब्लॉग की एक कविता. इस कविताका शीर्षक है- "अब तो तस्वीर बदलनी चाहिए"

                               अब तो तस्वीर बदलनी चाहिए--
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औरत ने जन्म दिया मर्दों को
मर्दों ने मौत का सामान दिया
कभी पर्वों में पूजा देवी कहकर
कभी सरे आम शर्मसार किया 
ये दोगली चाल  कुचलनी चाहिए
अब तो तस्वीर बदलनी चाहिए

कभी  झूठी  दिखाई सहानुभूति
अबला कह कर लाचार किया
कभी कुलटा दुश्चरित्रा कहा
खुद ही अस्मत पर प्रहार किया
सुप्त क्रोधाग्नि वो जलनी चाहिए
अब तो तस्वीर बदलनी चाहिए

वो  सहनशीलता अब ख़त्म हुई
अबला नारी खुद में  भस्म हुई
कब तक सोती वो  सजग हुई
हर इक दिल  में अग्नि  प्रकट हुई
भय की परछाई निकलनी चाहिए
अब तो तस्वीर बदलनी चाहिए

कोई आश्वासन नहीं चाहिए
झूठे  रहम की भीख नहीं चाहिए
अब आँख में आंसू नहीं आयेंगे
अपना हक  खुद लड़   कर पायेंगे
ये ज्वाला खून  में उबलनी  चाहिए
अब तो तस्वीर बदलनी चाहिए

लुट रही अस्मतें  हो रहे बलात्कार
चारों और चीत्कार ही चीत्कार
नहीं  कृष्ण धरा पर लेगा अवतार   
नहीं कोई अब होगा चमत्कार
अब हर नारी में ही दुर्गा ढलनी  चाहिए
अब तो तस्वीर बदलनी चाहिए
अब तो तस्वीर बदलनी चाहिए
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--राजेश कुमारी 
(सोमवार, 24 दिसंबर 2012)
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               (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-शिखा कौशिक.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-20.09.2022-मंगळवार.