रचनाकार-कविता-ममता की खान है माँ--

Started by Atul Kaviraje, September 21, 2022, 09:38:06 PM

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Atul Kaviraje

                                       "रचनाकार"
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मित्रो,

     आज पढते है,"रचनाकार" इस ब्लॉग के "कविता प्रवर्ग" की एक कविता . इस कविताका शीर्षक है-"ममता की खान है माँ"

                                     ममता की खान है माँ--
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ममता की खान है माँ, गीत, सुर, तान है माँ,
असंख्य दुआओं वाली, आन,बान, शान है ।
माँ का शुभ आँचल तो, शीश पे आशीष सम,
संकटों से है बचाती, सुदृढ़ वितान है ।।
जन्म देने वाली माता, सर्व प्रथम है गुरु ,
पाठशाला भी प्रथम,भरती माँ ज्ञान है ।
रामायण, भागवत, गीता औ कुरान है माँ,
धर्म, कर्म सिखलाती, मांगलिक गान है।।

सुपथ पर चलना, सिखलाती पल-पल,
बुरे कर्म करने से, करे सावधान है ।
स्नेह, दया, करुणा की, प्रतिमूर्ति देवी है माँ,
धरती पे ईश्वर की, माँ ही पहचान है ।
एक किलकारी पर, बिसराती सारे कष्ट,
ममता की गोद "मृदु", छोटा आसमान है ।
करती दुआएं सदा, खुशियाँ असीम मिलें,
माँ के बिना घर नहीं, लगता श्मशान है ।।

सारे तीर्थधाम माँ के, भीतर समाये हुए,
माँ के चरणों में, सारे देवता विराजते ।
प्रेम, करुणा, दया की, सागर विशाल है माँ,
ममता की गागर में , सद्गुण विराजते।।
ईश्वर का वरदान, धरती पे माँ जो मिली,
धड़कनें दे दीं हमें, गोद में विराजते ।
धरा से विशाल है माँ, हिमालय से भी ऊँची,
माँ में शक्ति, पराक्रम, अद्भुत विराजते ।।

(मातृदिवस की शुभ कामनाओं के साथ)

--डॉ0 मृदुला शुक्ला "मृदु"
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                  (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-रचनाकार.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-21.09.2022-बुधवार.