CG स्वर-मेंहदी--क्रमांक-१

Started by Atul Kaviraje, September 22, 2022, 09:44:06 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

                                       "CG स्वर"
                                      -----------

मित्रो,

     आज पढते है, "CG स्वर" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है- "मेंहदी"

                                      मेंहदी--क्रमांक-१--
                                     ----------------

     श्रृंगार का स्त्री से अटूट संबंध है। आदिकाल से ही स्त्री अपने आप को सुंदर बनाने के लिये तरह तरह के श्रंगार करती आ रही है। रंभा, उर्वशी और मेनका के श्रृंगार आज भी आधुनिक स्त्री के लिये मार्गदर्शक बने हुए हैं। अपनी सुंदरता में चार चांद लगाने के लिये हर स्त्री तरह तरह के सौंदर्य प्रसाधन उपयोग में लाती है और मेंहदी उनमें से एक है। बात हो शादी ब्याह की या तीज त्योहार की या सुंदरता निखारने की मेंहदी आज हर घर की पसंद हो गई है। वैवाहिक या किसी मांगलिक अवसर पर मेंहदी की रस्म सहज रूप से हमारे संस्कारों में शामिल हो जाती है। कलात्मक रूप से मेंहदी रचे हाथ हर किसी के आकर्षण का केन्द्र बन जाते हैं। ऐसे अवसरों पर देने को तो कई नज़राने होते हैं ....कोई आभूषण लाता है, कोई ज़रीदार कपड़े और भी न जाने क्य क्या....पर आपके लिये आज हमने चुना है मेंहदी को। और अगर आपके घर में ऐसा ही कोई खुशी का अवसर है, ढोल ताशे बज रहे है तो फिर क्या कहने....ये तोहफा कबूल कीजिये।

     प्रचलित लोकगीतों में वर्णन आता है कि मेहदी की झाड़ी सुमेर पर्वत पर उगी। वासुदेव ने इस झाड़ी को दूध से सींचा, बलराम ने इसकी देखभाल की। एक वर्णन ये भी है कि मेहदी स्वर्ग से आई इसीलिये इसमें इतनी महक और सुगंध है जो भी हो आजकल मेंहदी बहुतायत में पायी जाती है और घर घर में इसे लगाया जाता है। राजस्थान को मेंहदी का घर कहते हैं। गुजरात, म.प्र., उ.प्र., छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब में भी ये पाई्र जाती है पर हर जगह इसे अलग अलग नामों से जाना जाता है। संस्कृत में तो मेंहदी के अनेक नाम हैं जैसे मेदिका, मदयन्ती, नखपत्रिका, नखरंजन। दक्षिण में इसे महिलांची कहते हैं। बंगाल में नागदाना, पश्चिम  उत्तर भारत में मेंहदी को कटीला और पारसी में एकटा के नाम से और उर्दू में इसे हिना के नाम से जाना जाता है। मेंहदी ज़्यादातर रात में लगाई जाती है इसलिये इसे रजनी भी कहते हैं।  भारतीय संस्कृति में मेंहदी का एक महत्वपूर्ण स्थान है। शुभ कार्यों के समय मेंहदी रचाना भारतीय नारियों में पुरानी परंपरा है। मेंहदी भाईचारे का प्रतीक मानी जाती है। इसलिये ये रिसती है, रचती है, निखरती है, खिलती है और अपनी रंग और महक सब जगह बिखेरती है तभी तो इसे खुशरंग हिना कहा जाता है।

अजब रसा ए किस्मत ऐ हिना तेरी,
चमन से छूट के दस्त-ए-नाज़नीं में रही।
भीगे से तेरा रंग-ए-हिना और भी चमका,
पानी में निगार-ओ-कफ ऐ पा और भी चमका।।

बंद मुट्ठी में दिल को छुपाए बैठे हैं।
है बहाना कि मेंहदी लगाए बैठे हैं।।

--CG स्वर
(Tuesday, December 28, 2010)
-----------------------------------

                (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-CG स्वर.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
                ---------------------------------------------

-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-22.09.2022-गुरुवार.