मन के मोती-कविता-नीले अंबर सा यह सागर--

Started by Atul Kaviraje, September 24, 2022, 09:18:22 PM

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Atul Kaviraje

                                     "मन के मोती"
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मित्रो,

     आज पढते है, श्रीमती अभिलाषा चौहान, इनके "मन के मोती" इस कविता ब्लॉग की एक कविता . इस कविता का शीर्षक है-"नीले अंबर सा यह सागर"

                               नीले अंबर सा यह सागर--
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नीले अंबर सा यह सागर,
लहरें कितनी चंचल है।
मदमाती ये चंद्र देखकर
उछलें कूदें हर पल हैं।

मुट्ठी रेत फिसलती जैसे
सरक रही नित ये घड़ियाँ I
क्षण-क्षण का अवगुंठन हो
जुड़ जाएँ सारी कड़ियाँ I

पल-पल को जी भर कर जीना
किसने देखा कब कल है।
मदमाती ये चंद्र देखकर
उछलें कूदें हर पल हैं।

मन मृग आतुर दौड़ रहा है
ढूँढ रहा है कस्तूरी I
प्रेम भरा यह साथ हमारा
इच्छा कर लें सब पूरी I

टिक-टिक करती घड़ी बताती
समय नहीं ये अविचल है।
मदमाती ये चंद्र देखकर
उछलें कूदें हर पल हैं।

झरते पात मुरझाते सुमन
कहते एक कहानी है।
रस की धारा बहती कल-कल
हर ऋतु लगे सुहानी है I

निशा बाँध के चली पोटली
सूर्य उदित उदयाचल है।
मदमाती ये चंद्र देखकर
उछलें कूदें हर पल हैं।

--अभिलाषा चौहान
(सितंबर 11, 2022)
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       (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-experienceofindianlife.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-24.09.2022-शनिवार.