व्याकुल पथिक-छू कर मेरे मन को ...क्रमांक-2

Started by Atul Kaviraje, September 24, 2022, 09:24:58 PM

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Atul Kaviraje

                                     "व्याकुल पथिक"
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मित्रो,

     आज पढते है, "व्याकुल पथिक" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है-"छू कर मेरे मन को ..."

                              छू कर मेरे मन को ...क्रमांक-2--
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     एक और दृष्टिकोण से इस छुअन को देखें , जब  इंद्र के कुकृत्य की शिकार अहिल्या पथरा गयी थी। तब मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पांव के स्पर्श ने पुनः उसे पाषाण से नारी बना दिया। वह ऋषि पत्नी थी । राम के समक्ष धर्म संकट था , परनारी को हाथ से स्पर्श कर नहीं सकते थें और पांव से भी स्त्री की मर्यादा का उलंघन था। परंतु उन्होंने एक नारी के अस्तित्व की रक्षा के लिये ऐसा किया। उनके छुअन का मतलब था कि चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के पुत्र होने के नाते राजवंश ने अहिल्या की पावनता को स्वीकार किया , फिर प्रजा क्यों नहीं मानेगी। वन गमन के दौरान राम ने यही तो किया। भद्रजन जिन्हें अछूत मानते थें, जैसे केवट, शबरी और वानर जाति के लोग , उन सभी को अपने स्पर्श से बराबरी का सम्मान दिया।

     घायल पक्षीराज जटायु को गोद में उठा कर जब राम उसके बदन को सहलाते हैं , उसे पिता तुल्य बताते हैं। हम श्रोताओं को उस स्पर्श की अनुभूति कराते हुये मैंने देखा काशी में कि कुछ कथावाचकों के नेत्रों में जल भर आता था। वह छुअन प्रेमांशु बन गया। हर पीड़ा से मुक्त हो गया जटायु। यह सर्वोच्च पुरस्कार था उसका , रावण जैसे बलशाली से नारी की अस्मिता के लिये संघर्ष कर स्वयं का बलिदान कर देने का। ऐसा स्पर्श सम्पूर्ण रामायण में किसी अन्य को प्राप्त नहीं है।

     एक प्रसंग बलदेव दास बिड़ला जी का आता है। जब उन्होंने अपनी माँ का चरण स्पर्श कर अपना स्वयं का व्यवसाय करने की अनुमति मांगी थी। उनके पास कुछ रुपये थें। बताते हैं कि  माँ ने उन्हें आशीर्वाद में कहा था कि तुम्हें करोड़ों का घाटा लग जाय । बिड़ला जी माँ की वाणी को श्राप समझ कर रोने लगे, तो माता ने स्पष्ट किया कि पगले जब अरबों की सम्पत्ति तेरे पास होगी तब न करोड़ों की क्षति होगी। आज कितने ही करोड़ का सिद्धपीठ यहाँ विंध्याचल में बिड़ला जी का है ।ऐसे ही पड़ा रहता है।

     कभी कभी छुअन की चाह में जो चुभन मिलती है न, वह भी गजब की सकारात्मक उर्जा बन जाती है। बालक ध्रुव का स्मरण करें। पिता के गोद का स्पर्श ही तो चाहता था न वह, परंतु  सौतेली माँ की वाणी ने उस मासूम के हृदय को ऐसी चुभन दी कि उसने नारायणी सत्ता को हिला दिया।  अतः छुअन हो या फिर चुभन " उर्जा "दोनों में ही है । यह चुभन  ही है कि मैं ब्लॉग पर अपनी बातों को इस तरह से रख पाता हूँ।

     अपनी बात मैं इस पसंदीदा गीत से समाप्त करता हूँ,  जो कभी मुझे उस काल्पनिक दुनिया का स्पर्श कराता था , जिसकी चुभन अब दर्द दे जाती है -

आ जा पिया तोहे प्यार दूँ
गोरी बइयां तोपे वार दूँ
किस लिये तू, इतना उदास
सूखे सूखे होंठ, अँखियों मे प्यास
किस लिये किस लिये हो
रहने दे रे, जो वो जुल्मी है पथ तेरे गाओं के
पलकों से चुन डालूंगी मैं काँटे तेरी राहों के
हो, सुख मेरा लेले, मैं दुख तेरे लेलूँ
तु भी जिये, मैं भी जियूँ हो...

--व्याकुल पथिक
(Saturday, 29 December 2018)
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              (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-व्याकुल पथिक.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-24.09.2022-शनिवार.