गलथेथरई-अंतर आई.आई.टी. और जे.एन.यु. का !--क्रमांक-१

Started by Atul Kaviraje, September 25, 2022, 09:42:07 PM

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Atul Kaviraje

                                      "गलथेथरई"
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मित्रो,

     आज पढते है, "गलथेथरई" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है- "अंतर आई.आई.टी. और जे.एन.यु. का !"

              अंतर आई.आई.टी. और जे.एन.यु. का !--क्रमांक-१--
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     वैश्विक स्तर पर यदि दो कालजयी विभूतियों के नाम मुझे लेने हों जिनकी प्रतिभा से मैं चमत्कृत हूँ तो वो दो नाम होंगे - महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्स्टीन और महान सामजिक आर्थिक समाजशास्त्री कार्ल मार्क्स. इन दोनों महात्माओं ने इस धरती को अपने बेमिशाल कृतित्व समर्पित किये हैं. इनके चिंतन में गहन दर्शन का पुट है और भविष्य तथा भवितव्य के लिए प्रखर दृष्टि है. दोनों ने अपने अपने क्षेत्र में जो प्रतिमान स्थापित किये हैं उसकी एक उर्वरा दार्शनिक पृष्ठभूमि है. इसलिए मै दोनों को क्रमशः एक वैज्ञानिक या समाजशास्त्री से बढ़कर एक अद्भुत स्वप्नद्रष्टा मानता हूँ जिन्होंने मानव संतति को भविष्य के लिए एक विलक्षण विचार पथ दिया. हाँ ये जरुर एक खासियत रही कि इनके सपनों के बीज विशुद्ध वैज्ञानिक धरा पर पनपे. ऐसा नहीं कि कल्पना के डैने पर सवार होना या सपनों के सतरंगी संसार में कुलांचे भरना केवल साहित्यकारों या विज्ञानेतर सामाजिक शास्त्रों के अध्येताओं का ही शगल है. केकुल नामक प्रसिद्द रसायनशास्त्री ने नींद में ही सपने में एक सांप देखा जो अपनी पूंछ अपने मुंह में दबाये था. इसी सपने से प्रेरित होकर उहोने बेंजीन जैसे एरोमेटिक साइक्लिक कार्बनिक यौगिकों की संरचना का अविष्कार किया. अवोगाद्रो की परिकल्पना, आर्कीमिडिज के बाथटब में स्नान की कहानी और लीवर की सहायता से पूरी धरती को उलट देने की उनकी कल्पना तो किंवदंती ही बन  गयी है.

     न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को उलटते हुए आइन्स्टीन ने जब स्पेशल और जनरल थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी को सामने रखा, क्वांटम मेकानिक्स में कणिका-तरंग द्वैत की बात की  और फिर उन्होंने गुरुत्वीय तरंगो की कल्पना की , तो वे वैज्ञानिक से ज्यादा कहीं दार्शनिक और सृष्टि के सूत्रपात के  आध्यात्मिक अन्वेषण के प्रखर स्वप्नद्रष्टा नज़र आये. हालांकि तब वे गुरुत्वीय तरंगों के अस्तित्व की कोई ठोस प्रायोगिक पुष्टि करने में सफल नहीं रहे और मन मसोस कर रह गए कि यदि उनके पास अति संवेदनशील यंत्र रहते तो इन अति क्षीण कमजोर और अल्प संवेदी तरंगो को माप लेते . खैर, उन्होंने न्यूटन के त्रिविमीय ढाँचे में एक आयाम समय का भी डाला .चूँकि न्यूटन के त्रिविमीय ढाँचे में पीछे की ओर भी जाने की दिशा थी जो समय पर लागु नहीं हो पाती इसलिए आइन्स्टीन ने स्पेस-टाइम जाल का सिंगल एंटिटी प्रतिदर्श रखा जिसमे पिंड के घूर्णन के कारण हुआ संकुचन उसे परिक्रमा पथ प्रदान करता है.  इस तरह उनके मॉडल में  दो पिंडो के पारस्परिक स्पेस-टाइम जाल का विकृत संकुचन (distortion) ही किसी पिंड को दूसरे पिंड की ओर धकेलता है जिसे हम उन दोनों पिंडों के बीच का गुरुत्वाकर्षण कहते है; न कि जैसा न्यूटन ने कहा कि दोनों पिंड एक दूसरे को अपने 'गुरुत्व-पाश' में खींचते हैं. उन्होंने न्यूटन के नियमों को अत्वरित गति लोक तक ही सीमित रखा और त्वरित गतिशील जगत में न्यूटन की निरपेक्षता को नकारकर अपनी सापेक्षिक अवधारणा को स्थापित किया. अर्थात किसी वस्तु या पिंड की स्थिति दर्शक की स्थिति पर निर्भर करता है. एक ही पिंड की स्थिति टाइम स्पेस जाल के भिन्न भिन्न रिफरेन्स फ्रेम में अवस्थित दर्शकों के लिए भिन्न भिन्न होगी. कणिका-तरंग द्वैत में उन्होंने पदार्थ और उर्जा को आपस में परिवर्तनीय माना.

     विज्ञान जगत में आइन्स्टीन की दृष्टि ने हलचल मचा दी. कुछ वैज्ञानिकों ने तो इसे सिरे से ख़ारिज ही कर दिया. कुछ ने क्वांटम सिद्धांत का भी मज़ाक उड़ाया. लेकिन ध्यान रहे , यह विज्ञान की दुनिया है. यहाँ कोई वाद या पंथ नहीं होता. यहाँ लोग न्यूटन और आइन्स्टीन का झंडा टांगकर उसके नीची जिंदाबाद या मुर्दाबाद के नारे नहीं लगाते. यहाँ किसी सिद्धांत के आलोचक होने का मतलब है पूरी तन्मयता से उस सिद्धांत के उत्तरोतर शोध में संलग्न हो जाना और उसकी तार तार व्याख्या करना, स्वीकृति या अस्वीकृती की! ठीक वैसे ही जैसे आइन्स्टीन ने न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत को खगोलीय पिंडों की स्थिति को मापने के क्रम में गलत साबित किया कि कैसे दूर तारों से आती किरणों का पथ मध्य में पड़ने वाले ब्लैक होल के प्रभाव में मुड़ जाता है.

--गलथेथरई !                         
(SUNDAY, 8 OCTOBER 2017)
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                   (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-वाचाल.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-25.09.2022-रविवार.