हिंदी कविता-पुष्प क्रमांक-31-मिरी ये रूह प्यासी है तिरे ख्वाबों में आने को

Started by Atul Kaviraje, September 29, 2022, 09:15:12 PM

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Atul Kaviraje

                                     "हिंदी कविता"
                                    पुष्प क्रमांक-31
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मित्रो,

     आईए सुनतें है, पढते है, कुछ दिलचस्प रचनाये, कविताये. प्रस्तुत है कविताका पुष्प क्रमांक-31. इस कविता का शीर्षक है- "मिरी ये रूह प्यासी है तिरे ख्वाबों में आने को"

                         "मिरी ये रूह प्यासी है तिरे ख्वाबों में आने को"
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मिरी ये रूह प्यासी है तिरे ख्वाबों में आने को,
मैं रोया खून के आंसू तुझे अपना बनाने को !

मिली है बस ये तन्हाई, वफ़ा है आरजू मेरी,
जली अरसों निगाहे ये तुझे बस देख पाने को ।

बदन की चाँदनी तेरी अगर प्याले में ढल जाऐ,
शराबी भूल बैठेगा शराबों के ख़ज़ानों को।

ये जो बेहोश बैठा है वो मेरा होश ही होगा,
अभी अरसा लगेगा और इसको होश पाने को।

मरा वो जिस्म तो देखो जो शायद तक मिरा होगा,
यहीं मैं रोज़ मरता हूँ नई लाशें बनाने को।

मिरी ये साँस की उलझन तेरा ही नाम लेती है,
मिरा ये ख्वाब है सोया तेरे ख्वाबों में आने को ।

मिरे इस दर्द की मंज़िल कभी तुम जानती थी क्या?
मैं कितनी रात जागा हूँ, फ़लक को यूँ सजाने को!

मिरे इस दिल की डोरी है ये तेरी रेशमी जुल्फ़ें,
गले से तुम लिपट जाओ मुझे भी बांध जाने को ।

– प्रयास शर्मा "आशुतोष"
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               (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-फंकी लाईफ.इन/हिंदी-पोएटरी)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-29.09.2022-गुरुवार.