फ़ुरसतिया-साल के आखिरी माह का लेखाजोखा--क्रमांक-5

Started by Atul Kaviraje, October 05, 2022, 10:10:17 PM

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Atul Kaviraje

                                     "फ़ुरसतिया"
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मित्रो,

     आज पढते है, "फ़ुरसतिया" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है- "साल के आखिरी माह का लेखाजोखा"

                  साल के आखिरी माह का लेखाजोखा--क्रमांक-5--
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     इनके शनीचरी चिट्ठे पर बनारस,जहाज अपहरण,अनुगूंज तथा ठंड के बारे में लिखा गया.अब तो धूप निकल रही है रोज.शनिवार भी आ रहा है.लिखो कुछ नया.

     राम-राम करके देश परदेश की बात कह के रमण ने आतंकवादी समस्या पर अपने विचार रखे.अनुगूंज में आतंकवादियों के प्रति उदार नजरिये से रमणसहमत नहीं हैं.लोगों के विचारों से शायद उनकी प्रतिक्रया-- जाके पांव न फटी बिवाई,सो क्या जाने पीर पराई है.इंतजार है उनके लेख का.

     अपनी झंट जिंदगी ले के शांति भंग की की रमन ने.पाप नगरी टहलाया .फिर कविता में पाखाना किया.वैसे इस बारे में रागदरबारी (श्रीलाल शुक्ल)में बताया है:-

     आबादी लगभग पचास गज़ पीछे छूट गयी थीऔर वह वीरान इलाका शुरु हो गया था जहां आदमी कविता, रहज़नी और पाखाना तक कर सकता था .परिणामस्वरूप कई एक बच्चे ,कविता और रहज़नी में असमर्थ ,सड़क के दोनो किनारों पर बैठे हुये पाखाना कर रहे थे और एक-दूसरे पर ढेले फेक रहे थे.

     तो ऐसी ही किसी सड़क से गुजरे होंगे रमन और कविता भी कर दी होगी.

     कालीचरन से हमें भरोसा है कि स्वामीजी की भाषा में उनके यहां टिप्पणी करने वाला मौजूद है. बाजी के बारे में जो कहा वही हुआ.जीवन सफल से इस महीने की शुरुआत की.दुबई चलो की हांक लगाई.सूरमा भोपाली के निठल्लेपन को देखकर आलोक को जुड़वां भाई लगे कालीचरण .अभी इसकी पुष्टि होनी बाकी है.इंद्र की फरमाइस पर लिखा,कालीचरण-विभीषण संवाद मजेदार लगा.चपड़के नाती ने गणित की महिमा बताई.बकझक के बाद बाजी मारी.रविराज और कालीचरण दोनो का गुरुकुल एक(आई.आई.टी.खड़कपुर) हैं.

     मुझे कालीचरन,रमन और मत्सु के लिखने का बेलौस अंदाज अच्छा लगता है.मत्सु का रंगीन चिट्ठा मनमोहक लगता है.

     अरुण ने बहुत दिन बादकविता लिखी.पढ़कर लगा कि हम हर स्थितिमें दुखी रहने के साधन तलाश सकते हैं बस चाह होनी चाहिये.मुझे आज ही सुना गाना फिर याद आ रहा है:-

बड़ा लुत्फ था जब कुंवारे थे हम-तुम
सुनो जी बड़ा लुत्फ था.

     तत्काल एक्प्रेस दनादन दौड़ रही है-बाबा नागार्जुन,अज्ञेय जैसी विभूतियों को साथ लेकर.शोध क्षात्रायें टेलीफुनियाती है तो ठाकुर जीतेन्द्र का नाम नहीं बताते.बहुत नाइंसाफी है.कवितायें विजय ठाकुर जम के लिखते हैं.लोगबाग हाथ भी मांग चुके हैं.कविता चाय हो या वाक्य या फिर सुनामी लहरें ,लगता है कि अच्छी अनुदित कवितायें हैं.अनुदित इसलिये कि कविता में प्रवाह की कमी लगती है.ऐसा शायद तत्सम शब्दों के प्रयोग के प्रति आग्रह के कारण हो.आगे और अच्छी कविताओं का इंतजार है.

     शैलअंग्रेजी ब्लाग की साईट देखने निकले तो अइसा निकले कि अभी तक नहीं लौट पाये.मद्य प्रदेश में फंस गये लगता है

     पीयूष ने काफी दिन की खामोशी के बाद बात शुरु की स्पाइडर मैन से.फिर सिगरेट मंदिर का पता दिया.आई.टी.सी.वाले दौड़ पड़े मंदिर को फिल्माने.त्रासदियों के वर्णन के बाद वे बताते हैं ;-

     इन दिनों मामला बड़ा अजीब हो गया है। जिसे जो समझो, वो वह नहीं निकलता है । जिसे मॉडल समझो वो कॉल गर्ल निकलती है, जिसे धुरंधर टीम समझो वो फिसड्डी निकलती है, जिसे कहीं न गिनो वो ओलंपिक का राज्यवर्धन सिंह राठौर निकलता है और जिसे हिन्दुस्तानी पुलिस समझो वो चोर का बाप निकलती है.

--विजय ठाकुर
Posted by-अनूप शुक्ल
(Thursday, December 30, 2004)
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               (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-फ़ुरसतिया.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-05.10.2022-बुधवार.