फ़ुरसतिया-साल के आखिरी माह का लेखाजोखा--क्रमांक-6

Started by Atul Kaviraje, October 05, 2022, 10:11:55 PM

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Atul Kaviraje

                                     "फ़ुरसतिया"
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मित्रो,

     आज पढते है, "फ़ुरसतिया" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है- "साल के आखिरी माह का लेखाजोखा"

                  साल के आखिरी माह का लेखाजोखा--क्रमांक-6--
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     राजेश पूरे ढाई माह करते रहे भावी जीवन की तैयारी.इस बीच कैसे-कैसे समयगुजारा बताते है कविता के माध्यम से:-

कैसे-कैसे समय गुजारे,
कैसे-कैसे दिन देखे ।

आधे जीते,आधे हारे,
आधी उमर उधार जिये।

आधे तेवर बेचैनी के देखे,
आधे दिखे बीमार के।

प्रश्न नहीं था,तो बस अपना,
चाहत, कभी, नहीं पूजे।

हमने, अपने प्रश्नों के उत्तर,
बस,राम-शलाका में ढूँढे।

     कामना है कि राजन जब भी रामशलाका प्रश्नावली की शरण लें तो हर बार उनको पहली चौपाई मिले-

सुनु सिय सत्य असीस हमारी
पूजहिं मनकामना तुम्हारी.

     फुरसतिया में कृपया बायें थूकिये मेरा कुछ साल पहले का लेख था.दूसरा लेख अनुगूंज के लिये लिखा गया.तीसरा आपबीती-जगबीती.

इतना लिखने के बाद कुछ और बचता नहीं इस साल.छूट गये चिट्ठों/पोस्टों के लिये भूल-चूक,लेनी-देनी.

     नये साल की शुभकामनायें इस खूबसूरत कविता के माध्यम से.

नये साल की देहरी पर मुस्काता सा चाँद नया हो
नये मोतियों से खुशियों के, दीप्त सीप नैनों के तेरे.

हर भोर तेरी हो सिन्दूरी, हर साँझ ढले तेरे चित में
झंकार करे वीणा जैसी, हर पल के तेरे आँगन में.

जगमग रोशन तेरी रातें झिलमिल तारों की बारातों से
सूरज तेरा दमके बागों में और जाग उठे सारी कलियाँ.

रस-प्रेम लबालब से छलके तेरे सागर का पैमाना
तेरी लहरें छू लें मुझको सिक्त जरा हो मन अपना.

महकाये तुझको पुरवाई, पसरे खुशबू हर कोने में
वेणी के फूलों से अपने इक फूल बचाकर तुम रखना.

कोई फफोला उठे जो मन में, बदली काली आये कोई
टीस और बूँदें पलकों की, निर्द्वंद नाम मेरे कर देना.

सजा रहा हूँ इक गुलदस्ता नये साल की सुबह-सुबह मैं
तकती क्या हो, आओ कुछ गुल तुम भी भर लो न !!

--विजय ठाकुर
Posted by-अनूप शुक्ल
(Thursday, December 30, 2004)
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               (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-फ़ुरसतिया.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-05.10.2022-बुधवार.