मैं घुमन्तू-रचनाये-डायरी के पुराने पन्नों से

Started by Atul Kaviraje, October 08, 2022, 10:26:13 PM

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Atul Kaviraje

                                       "मैं घुमन्तू"
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मित्रो,

     आज पढते है, अनु  सिंग  चौधरी, इनके "मैं घुमन्तू" इस ब्लॉग की कुछ रचनाये.

                  डायरी के पुराने पन्नों से-टुकड़े टुकड़ों में ख्याल...
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"तुम अपने ख्वाब
बचाकर रखो
कि कल दुनिया
तुम्हारी आँखों में झांके
तो जिंदगी देखे!"


"बहाने और भी होते जो ज़िन्दगी के लिए
हम इक बार भी तेरी आरज़ू न करते"


"कहाँ ढूंढूं मैं,
कि गुम हूँ कई बरसों से/
मुझको ढूँढता फिरता है
अक्स मेरा"


"घेरकर मुझको खड़ी रुस्वाइयां चारों तरफ़/
और मेरे भीतर हैं तनहाइयां चारों तरफ़/
मुझको मैं ही नज़र आती नहीं अब, क्या कहूँ/
दिखती हैं मुझको परछाईंयां चारों तरफ़"


"जाने किस साये की तलाश रही मुझे उम्रभर/
जितना करीब आते गए, दूरियां बढती गयीं"

(१९९६ की डायरी से)
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--अनु  सिंग  चौधरी 
(शुक्रवार, दिसंबर 31, 2010)
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                (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-मैं घुमन्तू.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-08.10.2022-शनिवार.