हिंदी कविता-पुष्प क्रमांक-47-मोहब्बत के लिए खुद को बदलना पड़ता है

Started by Atul Kaviraje, October 15, 2022, 10:15:28 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

                                     "हिंदी कविता"
                                    पुष्प क्रमांक-47
                                   ---------------
मित्रो,

     आईए सुनतें है, पढते है, कुछ दिलचस्प रचनाये, कविताये. प्रस्तुत है कविताका पुष्प क्रमांक-47. इस कविता का शीर्षक है- "मोहब्बत के लिए खुद को बदलना पड़ता है"

(मोहब्बत के लिए खुद को बदलना पड़ता है, खूबसूरत हिंदी कविता)
----------------------------------------------------------

                       "मोहब्बत के लिए खुद को बदलना पड़ता है"
                      ---------------------------------------

आहिस्ता आहिस्ता करके,
पिघलना पड़ता है।
आसान नहीं मुहब्बत,
बहुत जलना पड़ता है।

बुझती भी नहीं आग दिल की,
जलकर राख भी नहीं होता है।
एक बार हो जाए मुहब्बत तो,
जिंदगी भर गिर गिर कर,
संभलना पड़ता है।

सदियों से रहा है दुश्मन,
जमाना मुहबत का|
घर वालों की नजर से भी,
आंसू बनकर निकलना पड़ता है।

खुब सोचना समझना मनोज,
किसी का होने से पहले।
क्योंकि हो जाए इश्क़ तो,
ताउम्र हाथ मलना पड़ता है।

इतिहास गवाह है मुहब्बत में,
मंजिल नहीं मिलती।
सूरज की तरह रोज,
निकलकर ढलना पड़ता है।

--मनोज
---------

               (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-फंकी लाईफ.इन/हिंदी-पोएटरी)
               --------------------------------------------------

-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-15.10.2022-शनिवार.