अमृता तन्मय-कविता-विरोधाभास

Started by Atul Kaviraje, October 15, 2022, 10:37:12 PM

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Atul Kaviraje

                                     "अमृता तन्मय"
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मित्रो,

     आज पढते है,श्रीमती अमृता तन्मय इनके "अमृता तन्मय" इस कविता ब्लॉग की एक कविता. इस कविता का शीर्षक है- "विरोधाभास"

                                      विरोधाभास--
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क्यूँ मैं कहूँ
पारदर्शी हो तुम
पूरे सौ प्रतिशत
जबकि तुममें
दिखती हूँ मैं...
पर कहीं न कहीं
है विरोधाभास
जहाँ मेरी धडकनें
मिल गयी है तुमसे
वहीँ एक -एक विचार
कहीं छूट गए है...
मैं अनुभव कर सकती हूँ
तुम्हारी विराटता का
अपनी ग्राह्यता के अनुसार
ग्रहण कर सकती हूँ तुम्हें
मिलावटों से निथारते हुए...
पर सांसो की डोर
बंधी है तुमसे ...
और मैं लेना चाहूंगी
जन्म-जन्मान्तर तक जन्म
तुमसे बंधने के लिए
या अपनी मुक्ति के लिए
या फिर
विरोधी सत्य के लिए ?

-- अमृता तन्मय
(Wednesday, December 22, 2010)
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               (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-अमृता तन्मय.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-15.10.2022-शनिवार.