शरदाक्षरा...-औरतें ही क्यों ?

Started by Atul Kaviraje, October 15, 2022, 10:41:32 PM

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Atul Kaviraje

                                    "शरदाक्षरा..."
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मित्रो,

     आज पढते है, डॉ.(सुश्री)शरद सिंह, इनके "शरदाक्षरा..." इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है- "औरतें ही क्यों ?"

                                   औरतें ही क्यों ?--
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     दीवान जरमनी दास का जन्म सन् 1895 ई.में पंजाब प्रांत में हुआ था। वे कपूरथला और पटियाला में मिनिस्टर रहे। उन्हें विश्व के अनेक देशों का भ्रमण करने का अवसर मिला। दीवान जरमनी दास ने भारत के तत्कालीन महाराजाओं और महारानियों के बारे में खुल कर लिखा। पिछले दिनों महारानियों पर लिखी गई उनकी किताब मुझे पढ़ने का अवसर मिला। पुस्तक का पहला ही शीर्षक था-'औरतें ही क्यों ?' शीर्षक ने मुझे चौंकाया। इस शीर्षक के तहत् पहला वाक्य था-''जब मेरी उम्र मुश्कि़ल से तीस साल की थी, तो एक बार हिज़ हाईनेस आगा खान ने मुझसे कहा था,'जरमनी, अगर तुम औरतों के साथ क़ामयाब हो तो समझो जि़न्दगी में ही क़ामयाब हो गए।'....''

     जरमनी दास का यह संस्मरण औरतों के प्रति पुरुषों की सामंतवादी सोच को तो उजागर करता ही है, साथ ही यह पुरुषों की स्वयं के प्रति उस मानसिकता को भी सामने लाता है जिसमें उनके भीतर का डर मौजूद है। इस डर को सच मानें तो लगता है गोया एक पुरुष के जीवन की सफलता और असफलता की धुरी उसने स्वयं स्त्री को ही बना रखा है। शायद यही कारण है कि पुरुष स्त्रियों के संदर्भ में जल्दी पजेसिव हो उठते हैं। दुर्भाग्य से उनके इस डर की सज़ा औरतों को तरह-तरह से भुगतनी पड़ती है।

--प्रस्तुतकर्ता-डॉ.(सुश्री)शरद सिंह
(Friday, November 26, 2010)
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                (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-शरदाक्षरा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-15.10.2022-शनिवार.