कुछ मेरी कलम से-कविता-प्रीत की छाया

Started by Atul Kaviraje, October 16, 2022, 10:38:50 PM

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Atul Kaviraje

                                  "कुछ मेरी कलम से"
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मित्रो,

     आज पढते है, रंजना भाटिया, इनके "कुछ मेरी कलम से" इस ब्लॉग की एक कविता . इस कविता का शीर्षक है- "प्रीत की छाया"

                                  प्रीत की छाया--
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कल कमरे की
खुली खिड़की से
चाँद मुस्कराता
नज़र आया

खुल गई भूली बिसरी
यादो की पिटारी...
हवा ने जब
गालों को सहलाया,

उतरा नयनो में
फ़िर कोई लम्हा
जीवन के
उदास तपते पल को
मिली जैसे "तरुवर की छाया.."

कांटे बने फूल फ़िर राह के ..
दिल फ़िर से क्यों भरमाया..?
हुई यह पदचाप फ़िर किसकी..?
दिल के आँगन में
जैसे गुलमोहर खिल आया..

कहा ...दिल ने कुछ तड़प कर
जो चाहा था ,वही तो पाया..!!
वक्त ने कहा मुस्करा कर...
कहाँ परिणाम तुम्हे समझ में आया?

तब तो रखा बंद
मन का हर झरोखा
आज फ़िर क्यों
गीत, प्रीत का गुनगुनाया?

भरे नैनों की बदरी बोली
छलक कर....
खोनी ही जब प्रीत तो....
फ़िर क्यों दिखती "प्रीत की छाया..!!! "

(#रंजू #डायरी के पुराने पन्नो से)
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--रंजू भाटिया
(SUNDAY, OCTOBER 16, 2022)
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             (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-रंजना भाटिया.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-16.10.2022-रविवार.