हिंदी कविता-पुष्प क्रमांक-50-जीवन की सच्चाई

Started by Atul Kaviraje, October 18, 2022, 09:14:36 PM

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Atul Kaviraje

                                     "हिंदी कविता"
                                    पुष्प क्रमांक-50
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मित्रो,

     आईए सुनतें है, पढते है, कुछ दिलचस्प रचनाये, कविताये. प्रस्तुत है कविताका पुष्प क्रमांक-50. इस कविता का शीर्षक है- "जीवन की सच्चाई"

(Hindi Kavita on sad love – कवि के अंदर छुपे हुए दर्दों को बयां करती हुई दिल को छू जाने वाली हिंदी कविता)
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                                 "जीवन की सच्चाई"
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मैं चाहता तो तुम्हे रोक भी लेता,
पर तुम तो बस एक खयाल थी,
तुम्हे ढूंढ लेता मैं शायद खुदमे,
पर तुम तो खुद पर सवाल थी।

किस तरह देखता चेहरा फिर से तुम्हारा
किस तरह पाता अब सहारा तुम्हारा,
किस मोड़ पर तुम्हारी राह देखता,
किस तरह से तुम्हारी आह देखता।

सोचता तुम्हें तो सोचता कैसे,
रोकता तुम्हे तो रोकता कैसे?
मिल रहा था तुम्हारी परछाई से काफी था,
मिल रहा था हमारी तन्हाई से काफी था I

अब किस रास्ते मे ढूँढू तुमको
जरा बताओ ना,
याद आती है तुम्हारी जान,
वापस आजाओ ना।

एक बार बस एक बार!
मुझे मुझसे मिलवा दो,
तुम्हारे बिना आती ही नही,
मुझे मेरी नींद लौटा दो I

आओ न मुझे याद आती है तुम्हारी,
खुशबू तुम्हारे बाद भी आती है तुम्हारी।
शायद! शायद! कुछ किस्सा तुम्हारा मुझमे बाकी है,
शायद! शायद! इक किस्सा तुम्हारा मुझमें बाकी है।

मुझे अब भी तुमसे मुहब्बत है,
मुझे अब भी तुम्हारी आदत है,
अब दुनिया से कोई गिला नही मुझे,
तुम्हें भी तो मुझसे शिकायत है।

काश! काश! कोई काश हमारे बीच न आता,
काश कोई काश मुझे रात भर ना सताता!
शायद तब हम हम होते,
शायद तब कुछ गम कम होते।

--©प्रयास शर्मा"आशुतोष"
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               (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-फंकी लाईफ.इन/हिंदी-पोएटरी)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-18.10.2022-मंगळवार.