हिंदी कविता-पुष्प क्रमांक-51-मुश्किलो का सामना करने की सीख

Started by Atul Kaviraje, October 19, 2022, 09:19:09 PM

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Atul Kaviraje

                                    "हिंदी कविता"
                                   पुष्प क्रमांक-51
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मित्रो,

     आईए सुनतें है, पढते है, कुछ दिलचस्प रचनाये, कविताये. प्रस्तुत है कविताका पुष्प क्रमांक-51. इस कविता का शीर्षक है- "मुश्किलो का सामना करने की सीख"

(Inspirational Hindi Kavita – मुश्किलो का सामना करने की सीख देती हुई एक बेहतरीन हिंदी कविता।)
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                            "मुश्किलो का सामना करने की सीख"
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"जो कुछ हो, मैं न सम्हालूँगा इस मधुर भार को जीवन के.
आने दो कितनी आती हैं बाधायें दम-संयम बन के ।

नक्षत्रो, तुम क्या देखोगे-इस ऊषा की लाली क्या है?
संकल्प भर रहा है उनमें संदेहों की जाली क्या है?

कौशल यह कोमल कितना है सुषमा दुर्भेद्य बनेगी क्या?
चेतना इंद्रियों की मेरी मेरी ही हार बनेगी क्या?"

"पीता हूँ, हाँ, मैं पीता हूँ-यह स्पर्श, रूप, रस, गंध भरा,
मधु, लहरों के टकराने से ध्वनि में है क्या गुंजार भरा।

तारा बनकर यह बिखर रहा क्यों स्वप्नों का उन्माद अरे!
मादकता-माती नींद लिये सोऊँ मन में अवसाद भरे।

चेतना शिथिल-सी होती है उन अंधकार की लहरों में,
मनु डूब चले धीरे-धीरे रजनी के पिछले पहरों में ।

उस दूर क्षितिज में सृष्टि बनी स्मृतियों की संचित छाया से,
इस मन को है विश्राम कहाँ! चंचल यह अपनी माया से।

--AUTHOR UNKNOWN
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               (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-फंकी लाईफ.इन/हिंदी-पोएटरी)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-19.10.2022-बुधवार.