मेरे मन का एक कोना-कविता-भरोसा

Started by Atul Kaviraje, October 26, 2022, 10:07:13 PM

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Atul Kaviraje

                                  "मेरे मन का एक कोना"
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मित्रो,

     आज पढते है, संगीता जांगीड, इनके "मेरे मन का एक कोना" इस ब्लॉग की एक कविता. इस कविता का शीर्षक है- "भरोसा"

                                         भरोसा--
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एक मन कितनी बार भरोसा करेगा ?
दूसरी बार...
तीसरी बार....
चौथी बार....?
पाँचवी बार में वो अभ्यस्त हो जाता है
उसे हर बार दरकते भरोसे की
आहट पता लग जाती है
वो अब भरोसे की कल्पनाओं से बाहर है
मन के शब्दकोष में अब
ये शब्द गुमशुदा है
वो असमंजस में है, पीड़ा में है
प्रपंचों के जंजाल में
खुद को एक सीध में रखते हुए
अब वो अक्सर एक सवाल करता है
कैसे होगा भरोसा ?
क्योकि यहाँ एक दौड़ लगी है
हर एक भागा जा रहा है
भरोसा हाथ में लिये
जैसे दौड़ते थे हम बचपन में
लेमन स्पून दौड़ में
निंबू गिर जाता था
हम खेल के बाहर हो जाते थे
लेकिन....
भरोसा गिरता है
और कोई खेल के बाहर नहीं होता
इसलिए किसी को कोई डर नहीं
झूठ सच कुछ भी करके
सब भरोसा बनाये हुए है
और मन स्तब्ध है

--संगीता जांगीड
(अक्तूबर 07, 2022)
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              (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-संगीता जांगीड.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-26.10.2022-बुधवार.