न्याय की तस्वीर का सच-कविता-बिदाई के पल

Started by Atul Kaviraje, October 26, 2022, 10:09:13 PM

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Atul Kaviraje

                               "न्याय की तस्वीर का सच"
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मित्रो,

     आज पढते है, कैलाश मंडलोई 'कदंब', इनके "न्याय की तस्वीर का सच" इस ब्लॉग की एक कविता. इस कविता का शीर्षक है- "बिदाई के पल"

                                     बिदाई के पल--
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घड़ी विदाई की आई
बिटिया चली विदेश
भीगी अँखियाँ बाबुल की
जैसे पावस प्रदेश।

मेहमानों से यूँ मिले
मंद-मंद मुस्काये
हृदय वेदना दिल में छुपाए
भीतर भीतर रोये।
रह-रह के सब याद आये
यादों के अवशेष।
घड़ी विदाई की आई
बिटिया चली विदेश
भीगी अँखियाँ बाबुल की
जैसे पावस प्रदेश।

बिटिया से बोले बाबुल
इस घर को तुम जाना भूल
उस घर काँटे भी मिले तो
समझ लेना उनको फूल।
जब जब याद मेरी आये
पिता समझ ससुर को देख
मन ही मन हो लेना खुश।
घड़ी विदाई की आई
बिटिया चली विदेश
भीगी अँखियाँ बाबुल की
जैसे पावस प्रदेश।

--कैलाश मंडलोई 'कदंब'
(दिसंबर 11, 2018)
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                         (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-तसवीर.इन)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-26.10.2022-बुधवार.