महंमद रफी-शोधिसी मानवा, राऊळी मंदिरी

Started by Atul Kaviraje, October 30, 2022, 09:54:49 PM

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Atul Kaviraje

मित्र/मैत्रिणींनो,

     आज ऐकुया, "काही गाणी आठवणीतली, काही साठवणीतली !" या गीत-मालिके -अंतर्गत, श्री महंमद रफी यांनी गायिलेले एक गीत. या गीताचे शीर्षक आहे- "शोधिसी मानवा, राऊळी मंदिरी"

                           "शोधिसी मानवा, राऊळी मंदिरी"
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शोधिसी मानवा, राऊळी मंदिरी
नांदतो देव हा, आपुल्या अंतरी

मेघ हे दाटती, कोठुनी अंबरी ?
सूर येती कसे, वाजते बासरी ?
रोमरोमी फुले, तीर्थ हे भूवरी
दूर इंद्रायणी, दूर ती पंढरी

गंध का हासतो, पाकळी सारुनी ?
वाहते निर्झरी, प्रेमसंजीवनी
भोवताली तुला, साद घाली कुणी
खूण घे जाणुनी, रूप हे ईश्वरी

भेटतो देव का, पूजनी अर्चनी ?
पुण्य का लाभते, दानधर्मातुनी ?
शोध रे दिव्यता, आपुल्या जीवनी
आंधळा खेळ हा खेळशी कुठवरी ?

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गीत : वंदना विटणकर
संगीत :श्रीकांत ठाकरे
स्वर : महंमद रफी
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--प्रकाशक : शंतनू देव
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(SUNDAY, MAY 22, 2011)
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                 (साभार आणि सौजन्य-माणिक-मोती.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
                             (संदर्भ-♫ गाणीमराठी.com ♫♪)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-30.10.2022-रविवार.