हिंदी कविता-पुष्प क्रमांक-63-वक़्त के किनारे से लम्हों को उठा रहा था

Started by Atul Kaviraje, October 31, 2022, 09:58:18 PM

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Atul Kaviraje

                                     "हिंदी कविता"
                                    पुष्प क्रमांक-63
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मित्रो,

     आईए सुनतें है, पढते है, कुछ दिलचस्प रचनाये, कविताये. प्रस्तुत है कविताका पुष्प क्रमांक-63. इस कविता का शीर्षक है- "वक़्त के किनारे से लम्हों को उठा रहा था"

(Best Hindi Poetry On Life – वक़्त के किनारे से लम्हों को उठा रहा था कविता)
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                         "वक़्त के किनारे से लम्हों को उठा रहा था"
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वक़्त के किनारे से लम्हों को उठा रहा था
चुन रहा था लम्हों को जब कोई बेहद याद आ रहा था

याद करते करते उनको आँखे छलक गयी
मोती बन कर गिरे जो आँसु उसमें इक सूरत झलक गयी

लम्हों को थामे हाथ में जब उन्हें जी रहा था
दर्द बह रहा था आँखो से और आँसुओ को पी रहा था

याद आ गया था एक ऐसा लम्हा हसीन
दिलनशीन थी ज़ेहन में और चेहरे पे मुस्कान महीन

चल पड़ा मैं उन लम्हों को समेटें
यादों की गठरी बना कर, तिजोरी में रखूँगा दिल की
कोई तोड़ ना पायें ऐसा ताला लगा कर

अब छू कर निकल जाते है अहसास बेशुमार
ना कोई दर्द होता है ना ही आँसु बहते है बेकार।।

--AUTHOR UNKNOWN
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               (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-फंकी लाईफ.इन/हिंदी-पोएटरी)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-31.10.2022-सोमवार.