साहित्यशिल्पी-किसान आंदोलन की आड में [आलेख]-ब

Started by Atul Kaviraje, October 31, 2022, 10:16:04 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "किसान आंदोलन की आड में [आलेख]" 

                     किसान आंदोलन की आड में [आलेख] –
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     हरीश दामोदरन कृषि अर्थशास्त्री के अनुसार अनुबंध पर खेती अधिनियम पर आपत्ति करने के लिए बहुत कम तर्क है जो केवल अनुबंध खेती को सक्षम बनाता है. कंपनियों और किसानों के बीच इस तरह के विशेष समझौते आलू, टमाटर जैसे विशेष प्रसंस्करण ग्रेड की फसलों में पहले से ही चालू हैं.अनुबंध की खेती प्रकृति में स्वैच्छिक है. यह प्रावधान प्रकृति में सुधारवादी है. जब यह एपीएमसी की बात आती है, तो किसान, अपने हिस्से के लिए, अपनी उपज की आवाजाही, स्टॉकिंग और निर्यात पर कोई प्रतिबंध नहीं चाहते हैं. विपणन के मामले में - विशेष रूप से एपीएमसी के एकाधिकार को समाप्त करने - किसानों, विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में, किसी को और कहीं भी बेचने के लिए "स्वतंत्रता की पसंद" के बारे में बहुत आश्वस्त नहीं हैं. इस विवाद का कारण धान, गेहूं और बढ़ती दाल, कपास, मूंगफली और सरसों के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद है. इस प्रकार देखे तो तीनों बिल पूरी तरह किसान हितैषी ही तो है.

     मगर किसानों कि आड़ में ये मुद्दा राजनैतिक हो गया है. ये कौन सा तरीका है कि संसद द्वारा बनाये गए कानूनों को ऐसे आंदोलन ले जरिये बदलने की कोश्शि की जाये. संसद की गरिमा कहाँ रह जाएगी फिर? क्या संसद के बहुमत की कोई महत्ता नहीं है?  लाल किले पर 26  जनवरी के दिन खालिस्तानी  झंडा लहराना भारत के वजूद को ख़त्म करने की गहरी साजिश प्रतीत हुआ. किसान आंदोलन और लाल किले पर ऐसे खालिस्तानी झंडा फहराना भारत की प्रभुसत्ता को ललकारना है. यह बात तो सच है कि आज इन प्रोटेस्टर्स की काली करतूत देश के सामने आ गई. आज ये आंदोलन पूरी तरह से नंगा हो गया. इनके प्रति इतने दिनों से देश की जो सहानुभूति थी  वह सब खत्म हो गई. सारा देश अब  इन पर थु-थू कर रहा है.  जब हम सब सारे भारतवासी राष्ट्रीय पर्व मनाने में व्यस्त थे तब ये घटिया मानसिकता के लोग, देश की राजधानी में हिंसा और अराजकता फैला रहे थे.

     सरकार ने अब तक पूरे मामले में बड़ा शांतिपूर्ण साथ दिया है. हमारे पुलिस कर्मी भाई-बहन देश की आन- बान के लिए घायल हुए, उनको तहदिल से सलाम. सरकार की नींव आज और मजबूत हुई है और पूरे देश ने देखा कि आंदोलनकारी किसान नहीं है और न ही वर्तमान सरकार द्वारा लाये गए बिल किसान विरोधी है. धरने पर बैठे लोग सोच-समझी राजनीति कर रहें हैं. ये ऐसे लोग है जो अपनी घटिया मानसिकता के कारण देश को अस्थिर करना चाहते है. सुप्रीम कोर्ट को अब इस मामले को दोबारा से सुनना चाहिए. ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के आदेश देने चाहिए जो हमारी राष्ट्रीय एकता और संविधान पर चोट करें, वो भी पूरी तरह प्लानिंग के जरिये. ये किसान आंदोलन नहीं है ये भारत की संप्रभुता पर आतंकी हमला है इस तरह के हमलों को सरकार को कुचल देना चाहिए. दूसरी तरफ असली किसान नेताओं को सामने आकर भारत सरकार से सीधी बात करनी चाहिए. ऐसे घटिया लोगों के नाम सामने आने चाहिए जो अपने राजनैतिक उद्देश्यों के लिए देश के किसान को आगे कर अपना घिनौना खेल रच रहें है. उनको ये सच बताना ही होगा कि देश का मेहनतकश, सच्चा किसान कभी जयचंद नहीं हो सकता.

✍ - डॉo सत्यवान सौरभ,
(बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा)
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                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-31.10.2022-सोमवार.