स्वतंत्र आवाज़-कविता-उसके भी थे कुछ सपने !

Started by Atul Kaviraje, November 06, 2022, 10:32:36 PM

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Atul Kaviraje

                                    "स्वतंत्र आवाज़"
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मित्रो,

     आज पढते है, "स्वतंत्र आवाज़" इस ब्लॉग की एक कविता. इस कविता का शीर्षक है- "उसके भी थे कुछ सपने !"

                               उसके भी थे कुछ सपने !--
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अभी वो खुद को भी ठीक से समझ नहीं सकी थी
कि दूसरों को समझने की बारी आ गई
खुद के पैरों पर खडी़ होती उससे पहले
किसी का सहारा बनने की जिम्मेदारी उसके कंधे पर आ गई
अभी वो खुद से ठीक से रू -ब -रू भी नहीं हुई थी
कि इक नई जान को इस दुनियाँ से रूबरू कराने की जिम्मेदारी आ गई
गाल गुलाबी होते उससे पहले
उसके हाथ पीले हो गए
उसकी आँखों में सुनहरे सपने पलने से पहले
टूट कर चकनाचूर हो गए
उसके भी थे कुछ सपने
पर नहीं समझ सके उसके अपने
अपना कहती किसी को उससे पहले
उसके अपने पराये हो गए
धूम धाम से करके तैयारी
बना दिया उसे समाज की नजरों में अबला नारी

(बाल विवाह का सिकार होने वाली लड़कियों के दर्द को अपनी टूटी -फूटी पंक्तियों से बयां करने का इक छोटा -सा प्रयास)

--स्वतंत्र आवाज़
(सोमवार, फ़रवरी 22, 2021)
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             (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-डी बी जे एम सी.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-06.11.2022-रविवार.