आपके साथ-कविता-तब मैं

Started by Atul Kaviraje, November 06, 2022, 10:34:32 PM

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Atul Kaviraje

                                     "आपके साथ"
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मित्रो,

     आज पढते है, शैलेंद्र शांत इनके "आपके साथ" इस ब्लॉग की एक कविता. इस कविता का शीर्षक है- "तब मैं"

                                         तब मैं--
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तब मैं
मैं  धीमा
सुस्त   ,गतिहीन
निष्क्रिय इतना
जितना कि अजगर
गतिशील पंक्षी को ठूंसे रखता
आलस्य की जेंब  में
बस बीच बीच में ही
पुचकारता,टटोलता रहा उसे
पर जब भी टटोलता
हाथ में आ जाते उसके पंख
जो उड़ने को हो जाते बेताब
मैं  उसके मुलायम स्पर्श को महसूस करता
और फिर ठूंस देता उसे
दूसरी जेंब में
जो फटी होती अंदर से
इसकी खबर तब लगी
जब सेमल कि फुनगी पर बैठ
चहचहाने लगी कविता
मुझे अच्छा लगा
और साथ ही तरस आया खुदपर
फिर अपनी साबुत जेब से
उस पंक्षी को किया आजाद
तब से  कुछ सुगबुगाहट सा
महसूस  कर रहा  हूँ   !     

--प्रस्तुतकर्ता-शैलेंद्र शांत
(गुरुवार, 7 अप्रैल 2011)
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            (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-शैलेंद्र-आपके साथ.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-06.11.2022-रविवार.