मेरा सृजन-ग़ज़ल-सियासत

Started by Atul Kaviraje, November 06, 2022, 10:38:16 PM

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Atul Kaviraje

                                      "मेरा सृजन"
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मित्रो,

     आज पढते है, ओंकार सिंह 'विवेक', इनके "मेरा सृजन" इस ब्लॉग की एक ग़ज़ल. इस ग़ज़ल का शीर्षक है- "सियासत"

                                    सियासत - ग़ज़ल--
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उसूलों  की  तिजारत  हो  रही है,
मुसलसल यह हिमाकत हो रही है।

इधर  हैं  झुग्गियों  में  लोग  भूखे,
उधर  महलों  में दावत हो रही  है।

जवानों की शहादत पर भी देखो,
यहाँ  हर पल सियासत हो रही है।

धरम, ईमान, तहज़ीब-ओ-तमद्दुन,
कहाँ  इनकी हिफ़ाज़त  हो रही है।

न बन पाया मैं इस दुनिया के जैसा,
तभी तो मुझ को दिक़्क़त हो रही है।

--ओंकार सिंह 'विवेक'
(April 29, 2019)
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               (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-विवेक ओक्स.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-06.11.2022-रविवार.