कबाड़खाना-हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यों न ग़र्के़ दरिया

Started by Atul Kaviraje, November 07, 2022, 10:35:13 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

                                     "कबाड़खाना"
                                    -------------

मित्रो,

     आज पढते है, अशोक पांडे, इनके "कबाड़खाना" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है- "हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यों न ग़र्के़ दरिया"

                 हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यों न ग़र्के़ दरिया--
                ------------------------------------------
 
     उस्ताद असद अमानत अली खान पटियाला घराने से ताल्लुक रखते थे। ८ अप्रैल २००७ को दिल का दौरा पड़ने से मात्र बावन साल की वय में उनका असमय देहान्त हो गया। शास्त्रीय और अर्धशास्त्रीय संगीत में तमाम तरह के प्रयोग करने वाले उस्ताद असद अमानत अली खान ने खू़ब ग़ज़लें भी गाईं।

     १९९४ में पाकिस्तान में रिलीज़ हुए अल्बम 'ग़ालिब का अन्दाज़-ए-बयां और' से सुनिये उन्हीं की गाई मिर्ज़ा असद की अतिविख्यात ग़ज़ल।

     (*राग भूपाली में गाई हुई उस्ताद असद अमानत अली खान की बन्दिश 'लागे रे नैन तुम से पिया मोरे' को मैं कई वर्षों से तलाश रहा हूं। मेरे घर से कोई सज्जन उस पूरे संग्रह को ही पार कर ले गए थे। यदि कोई परोपकारी आत्मा मुझे उस बन्दिश तक पहुंच पाने की राह बता पाती तो मेरा साल बन जाता। )

--अशोक पांडे     
(Monday, December 31, 2007)
----------------------------------

              (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-कबाड़खाना.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
             -------------------------------------------------

-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-07.11.2022-सोमवार.