Life with Pen and Papers-उस पार --2

Started by Atul Kaviraje, November 07, 2022, 10:47:26 PM

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Atul Kaviraje

                           "Life with Pen and Papers"
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मित्रो,

     आज पढते है, भावना ललवाणी, इनके "Life with Pen and Papers" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है- "उस पार --2"

                                   उस पार --2
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     लड़के ने धीरे धीरे बताना शुरू किया, और इस तरह उन दोनों के बीच बातों का सिलसिला चल निकला...और यूँ ही चलता चला गया जाने कब तक, वहीँ झील के किनारे बैठे .. ऐसा लग ही नहीं रहा था कि दोनों अजनबी हैं और अभी कुछ देर पहले ही मिले हैं...ऐसा लग रहा था जैसे दो पुराने दोस्त एक लम्बे अंतराल के बाद मिल रहे हों ..  समय के कांटे भी  जैसे कहीं रुक गए, सुस्ताने लगे,  उनकी बातें सुनने लगे...अचानक लड़की बातें करते करते रुक गई जैसे किसी चीज़ ने बेसाख्ता उसका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया हो..उसने लड़के की तरफ कुछ झिझकते हुए देखा..उसने समझा, और पूछा, "क्या हुआ?"

"मुझे वो फूल चाहिए." लड़की ने उंगली से इशारा करके बताया...वहाँ झील में फूल था..पूरा खिला हुआ, थोडा गुलाबी,  थोडा किनारों पर सफ़ेद और थोडा सा कुछ और हरे भूरे रंगों का मिश्रण.. फूल झील के किनारे से थोडा दूर था, वहाँ तक पहुंचना  ज़रा मुश्किल सा था..

"वो तो काफी दूर है, और कुछ है भी नहीं कि वहाँ तक जाया जा सके.."  लड़के ने थोडा परेशान होते हुए समझाना चाहा.. पर लड़की इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुई. लेकिन उसने आगे कुछ  न कहा न पूछा पर उसका चेहरा कुछ नहीं, बहुत कुछ कहता हुआ सा लग रहा था..लड़के ने देखा , कुछ समझा  और कुछ महसूस किया..फिर कहा..

"तुम वो फूल क्यों नहीं ले लेतीं..वो भी तो बहुत सुन्दर हैं...हैं ना?"  उसने कुछ झाड़ियों की तरफ इशारा करते हुए कहा..और लगा जैसे कि लड़की को ये  सुझाव पसंद आ गया और वो तुरंत ही उन झाड़ियों की तरफ तेज़ कदमों से चली गई.. फिर जैसे उसे कोई नया ही खेल मिल गया ..उसने कुछ फूल डंठल समेत तोड़ लिए और कुछ को उनके डंठल और नरम छोटी पत्तियों समेत ....कुछ फूलों को उसने अपनी कलाई पर कंगन की तरह लपेट लिया, कुछ फूलों को कानों के बुन्दों की तरह सजा लिया और कुछ का एक हार बना कर गले में पहन लिया.. और अपने माथे पर फूलों का छोटा ताज भी सजा लिया..उसकी हंसी, खिलखिलाहट रुकने का नाम नहीं ले रही थी, एक पेड़ से दूसरे की तरफ जाती हुई, पेड़ों से लटकती  फूलों की लताओं से लिपटती हुई, उनमे खुद को उलझाती हुई..बस यहाँ से वहाँ..

     वो उसे देख रहा था... आश्चर्यचकित और चमत्कृत सा, ..ये उसकी आँखों के सामने क्या है...ये कोई  लड़की है या फूलों की एक  बेल जो उस लड़की की तरह दिख रही है.. दोनों में अंतर करना मुश्किल लग रहा था..थोड़ी देर में लड़की का ध्यान उस पर गया, उसकी निगाहों पर गया...और उसने भी अपनी आँखें लड़के के चेहरे पर टिका दीं.. उसकी तेज़ नज़रें लड़के की आँखों के परदे को भेदते हुए उसके दिल और आत्मा तक पहुँच रही थीं..जैसे सब कुछ जाने ले रही हो, सब देख रही हों.. लड़के ने अपनी आँखें  झुका ली और बड़ी मुश्किल से बोला..

"तुम.. तुम बहुत..बहुत.."

"सुन्दर लग रही हूँ.." उसने वाक्य पूरा किया और फिर से एक खिलखिलाहट हवा में बिखर गई..

"हाँ बहुत सुन्दर.."

     वो मुस्कुराई..और फिर अगले कुछ लम्हों तक खामोशी ही उन दोनों के बीच बातें करती रही..कुछ कहती रही और सुनती रही..ऐसा लगा जैसे सारा जहान..ये सारी कायनात, वक़्त के उस एक लम्हे पर आकर थम  गई हो..कुदरत की बनाई हर चीज़, हर रचना जैसे उस खामोशी से  सम्मोहित हो कर वहीँ रुक कर उन दोनों को देख रही थी..खामोशी के उस जादू में सिर्फ साँसों की आवाज़ ही हवाओं में प्रतिध्वनित हो रही थी..

     अचानक एक तेज़ आवाज़ ने उस प्रवाह को तोड़ दिया..लड़का तुरंत मुड़ा और उस दिशा में देखने लगा जहाँ  से आवाज़ आई थी.. "मुझे बुला रहे हैं, मुझे जाना होगा.." उसने धीमी आवाज़ में कहा..लड़की चुप रही, बगैर एक भी शब्द बोले..

"मुझे जाना है.."

     वो वैसी ही खामोश रही, उसकी आँखें अब किसी शून्य में खो गईं सी लगती थीं...

     वो कुछ देर, कुछ क्षण वहाँ खड़ा रहा, इतनी देर में वो तेज़ आवाज़ फिर से गूंजी..लड़का अब उस आवाज़ की दिशा में दौड़ चला..लेकिन फिर जैसे कुछ याद आया और फिर एक पल के लिए रुका और चिल्लाया..

"तुमने मुझे अभी तक अपना नाम नहीं बताया..?"

"जून ..मेरा नाम जून है.."

"जून.. अजीब नाम है.." लड़के ने अपने आप से कहा और फिर चला गया. लड़की अब उस दिशा में देखने लगी जहाँ वो भागता हुआ  गया और फिर कहीं खो गया. अगले कुछ क्षणों तक वो वहीँ खड़ी रही, निरुद्देश्य सी और फिर धीरे धीरे पेड़ों की तरफ वापिस चली गई. वो सोच रही थी.. समझ नहीं पा रही थी..
"क्या मैं दुखी हूँ..क्या कुछ कमी सी है, क्या मुझे उसकी कमी महसूस हो रही है..क्या मैं..???

--भावना ललवाणी 
(Thursday, 29 December 2011)
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        (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-lifewithpenandpapers.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-07.11.2022-सोमवार.