रोहितस घोरेला-कविता-दिल मेरा...!

Started by Atul Kaviraje, November 07, 2022, 10:51:30 PM

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Atul Kaviraje

                                   "रोहितस घोरेला"
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मित्रो,

     आज पढते है, "रोहितस घोरेला" इस ब्लॉग की एक कविता. इस कविता का शीर्षक है- "दिल मेरा...!"

                                      दिल मेरा...!--
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विरान खंडरों की तरह पड़ा हैं दिल मेरा
आज खुबसुरत कहने आई इस खंडर को,
   
वर्षों पहले कभी मंजिल को तरसा दिल मेरा
आज तुं भी चल पड़ी अनजाने से इस सफ़र को

शीशा था कब का टुटा, पत्थर सा बना दिल मेरा
आज प्रेम जताने आई नासमझ इस पत्थर को,

कभी प्रेम फसल अपार हुई, बंजर सा बना दिल मेरा
लौट के बोने आए प्रेम के चन्द बिज इस बंजर को,

दवा थी कभी प्यार तेरा, बेअसर है अब दिल मेरा
अब तो कितने ही कौंदते चले गये इस बेअसर को,

तुं तेरी जिद्द पर अड़ी रही, जिद्दी न था दिल मेरा
जिद्दी बनना पड़ा भटके हुए इस दर-दर को,

नजरों से दूर चली जाओ तो बेहतर हैं
की दिल मिला ना मिला प्यार इस खंजर को,

माना की दरिया भी जिद्दी हैं,पर समन्दर भी कहाँ कम हैं
'रोहित' वरना कब से लगी दरिया मीठा करने समन्दर को,

(एक बेवफा की कहानी जो पहले तो एक प्रेमी को नकार चुकी है और बाद में लौट कर उसी प्रेमी के पास आती और अपना प्यार जताती है पर वो प्रेमी किस तरह से उसे उसका जवाब देता यही सब कुछ.....)

" आप सभी को नव वर्ष की कोटि कोटि शुभकामनाएँ "

--रोहितस घोरेला
(Saturday, 24 December 2011)
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              (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-रोहितस घोरेला.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-07.11.2022-सोमवार.