मैं और चाँद ....-कविता-गुरुत्वाकर्षण

Started by Atul Kaviraje, November 14, 2022, 10:24:54 PM

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Atul Kaviraje

                                     "मैं और चाँद ...."
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मित्रो,

     आज पढते है, ज़ोया, इनके "मैं और चाँद ...." इस लेबल की एक कविता. इस कविता का शीर्षक है- "गुरुत्वाकर्षण"

                                       गुरुत्वाकर्षण--
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कल रात यूँ हुआ, हाथ जा चाँद से टकरा गया,
तुम्हे छूने की चाह में, हाथ झुलस के रह गया।

दूर जाते - जाते ये तुम कितनी दूर निकल गए !

*
  * 
*
*
मैं पृथ्वी सी घूमती दिन-रात अपनी धुरी पे युगों से,
तुम चाँद सा दूर मगर फिर भी मुझसे सदा बँधे से।

क्या तुम्हारे और मेरे बीच भी कोई गुरुत्वाकर्षण है ?

#ज़ोया
(गुरुवार, जुलाई 16, 2020)
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             (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-venusjun25.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-14.11.2022-सोमवार.