साहित्यशिल्पी-कच्चे धागों से बने मजबूत रिश्ते का नाम है राखी [आलेख]

Started by Atul Kaviraje, November 20, 2022, 09:43:28 PM

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Atul Kaviraje

                                    "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "कच्चे धागों से बने मजबूत रिश्ते का नाम है राखी [आलेख]" 

                कच्चे धागों से बने मजबूत रिश्ते का नाम है राखी [आलेख] –
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कच्चे धागों से बने मजबूत रिश्ते का नाम है राखी ० कई रिश्तों में रेशमी धागे भर रहे रंग [आलेख]- डॉ. सूर्यकांत मिश्रा--1--
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     राखी अथवा रक्षा-बंधन का पर्व ऐसा पर्व है जो कच्चे धागों से भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को मजबूती दे रहा है। यह पर्व अपने महत्व के चलते अब हिन्दू धर्म ही नही अन्य धर्मावलंबियों को भी आकर्षित कर रहा है। आम लोगों के बीच धरम भाई और धरम बहन जैसे रिश्तों का जन्म दाता भी यही पवित्र त्योहार है। हमारे धार्मिक और पौराणिक ग्रंथ भी इस पर्व की कहानियों से भरे पड़े हैं। यही कारण है कि इस पर्व का तात्पर्य विस्तृत अर्थों में लगाया जाता है। प्रत्येक बहन को इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि वह अपने भाइयों की कलाई में पवित्र धागा बांधने से पूर्व उसे प्रभु चरणों मे अर्पित कर शक्ति का संचार करने प्रार्थना करे। वैसे तो राखी का पर्व एक-दूसरे को दिए गए वचन को निभाने की प्रतिज्ञा ही है। इसी लिहाज से अब परिवार में लगभग हर रिश्ते में इसका प्रभाव दिख रहा है। यदि इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो यह पर्व ब्राह्मणों का पर्व है। इसे ब्राह्मणी पर्व की भी संज्ञा दी जाती है। इसी दिन कर्मकांडी पंडितों द्वारा अपने यजमनो को मौली धागा बांधकर सभी विपत्तियों से दूर रखने इस मंत्र का उच्चारण किया जाता है-

येन बद्धो बलि राजाएदान वेंद्रो महा बला,
तेन त्वाम प्रति बद्धमिएरक्षे! माचल! माचल।।

     रक्षा-बंधन का पर्व महज भाई-बहन के रिश्तों को प्रगाढ़ता देने का संकेत ही नहीं वरन वेद-वेदांत के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कहा जाता है कि श्रावण मास की इसी पूर्णिमा तिथि को वेदों का अध्ययन प्रारम्भ किया जाता था। यह पर्व महज भाई-बहन को ही उत्तरदायित्व से नहीं बांधता, वरन इसी दिन एक शिष्य अपने गुरू के पास पहुंचकर उनसे रक्षा सूत्र बंधवाकर आशीर्वाद प्राप्त करता है। बदली हुई परिस्थितियों में इस पर्व को परंपरा तक समेटने का जो कार्य किया जा रहा है वह वास्तव में चिंतनीय है। कारण यह कि हमारी पीढ़ी यदि इसकी अकाट्य मजबूती को न समझ पाए तो पर्व की महत्ता आगे नहीं बढ़ पाएगी। औपचारिकता के बंधन में जकड़ा जाना भाई-बहन के पवित्र रिश्तें पर ग्रहण लगाने से कम न होगा, जिसके लिए हम और हमारा समाज ही जवाबदार होगा। रक्षा-बंधन का पर्व सामाजिक और पारिवारिक प्रतिबद्धता के साथ एक सूत्रता का सांस्कृतिक पर्व भी मन जाता है। किसी कारणवश भाई और बहन के बीच उत्पन्न खटास को भी यह पर्व दूर कर देता है। हमारे देश के कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने तो बंग-भंग का विरोध करते हुए इस पर्व को बंगाल निवासियों के बंधुत्व के लिए भी उपयोग कर दिखाया था।

--प्रस्तुतकर्ता-डॉ.सूर्यकांत मिश्रा
राजनांदगांव (छ.ग.)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-20.11.2022-रविवार.