माणिक वर्मा-कबिराचे विणतो शेले, कौसल्येचा राम

Started by Atul Kaviraje, November 21, 2022, 09:36:02 PM

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Atul Kaviraje

मित्र/मैत्रिणींनो,

     आज ऐकुया, "काही गाणी आठवणीतली, काही साठवणीतली !" या गीत-मालिके -अंतर्गत, श्रीमती माणिक वर्मा यांनी गायिलेले एक गीत. या गीताचे शीर्षक आहे- "कबिराचे विणतो शेले, कौसल्येचा राम"

                         "कबिराचे विणतो शेले, कौसल्येचा राम"
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कबिराचे विणतो शेले, कौसल्येचा राम
भाबड्या या भक्तासाठी, देव करी काम !

एक एकतारी हाती, भक्त गाई गीत
एक एक धागा जोडी, जानकिचा नाथ
राजा घनःश्याम !

दास रामनामी रंगे, राम होइ दास
एक एक धागा गुंते, रूप ये पटास
राजा घनःश्याम !

विणुन सर्व झाला शेला, पूर्ण होइ काम
ठायि ठायि शेल्यावरती, दिसे रामनाम
गुप्त होई राम !

हळु हळु उघडी डोळे, पाहि जो कबीर
विणूनिया शेला गेला, सखा रघुवीर
कुठे म्हणे राम ?

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गीत : ग दी माडगुळकर
संगीत: पू ल देशपांडे
स्वर : माणिक वर्मा
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--प्रकाशक : शंतनू देव
(WEDNESDAY, APRIL 20, 2011)
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                 (साभार आणि सौजन्य-माणिक-मोती.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
                           (संदर्भ-♫ गाणीमराठी.com ♫♪)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-21.11.2022-सोमवार.