साहित्यशिल्पी-देश हित में नहीं है त्रुटिपूर्ण शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009-1

Started by Atul Kaviraje, November 26, 2022, 09:14:01 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "देश हित में नहीं है 'त्रुटिपूर्ण शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009' [आलेख]" 

   देश हित में नहीं है 'त्रुटिपूर्ण शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009' [आलेख] –1--
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     अभी कुछ दिन पूर्व ''शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत दायर हुए 40 हजार से अधिक मामले'' शीर्षक से इण्टरनेट पर एक समाचार प्रकाशित किया गया था। इस समाचार के अनुसार विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि भारत में शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत अब तक 40 हजार से अधिक मामले दायर किये गये हैं। विश्व बैंक के नीतिगत शोधपत्र में पोर्टल 'इंडियनकानून डॉट ओआरजी' के आंकड़ों के हवाले से कहा गया कि भारत में 8 साल पहले अमल में आने के बाद से अब तक शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत 41,343 मामले दायर किये गये हैं। इनमें से 2,477 मामले उच्च्तम न्यायालय तक पहुंचे और वहां इनकी सुनवाई चल रही है। इससे यह सिद्ध होता है कि इस अधिनियम में कई कमियां विद्यमान हैं जिनके कारण न्यायालयों में मुकद्मों की संख्या लगातार बढ़ती चली जा रही है।

     इसके साथ ही अभी कुछ समय पूर्व एक न्यूज चैनल के माध्यम से यह बात भी सामने आई थी कि कर्नाटक में अल्पसंख्यक संस्थानों को शिक्षा के अधिकार अधिनियम के साथ ही कई अन्य प्रकार की मिली हुई छूट का फायदा उठाने तथा अपने शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता को बचाने के लिए लिंगायत समुदाय हिन्दू धर्म से अलग होने की मांग कर रहा है। हमारी इस बात से देश के सभी नागरिक सहमत होंगे कि अपने निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए इस तरह की भावना देश की एकता एवं अखण्डता के लिए अत्यधिक खतरनाक है। यही नहीं इस अधिनियम के अन्तर्गत निजी स्कूलों को मान्यता देने के लिए ऐसे-ऐसे कठोर नियम बनाये गये हैं, जिनका पालन न कर पाने के कारण अब तक देश भर में लाखों निजी स्कूल बंद हो चुके हैं। मजे की बात यह है कि नेशनल बिल्डिंग कोड के अनुसार स्कूल भवन का निर्माण एवं स्कूल भवन में अग्नि शमन यंत्र की स्थापना आदि जैसे नियमों का पालन न कर पाने के कारण एक ओर जहां निजी स्कूलों को बंद किया जा रहा है तो वहीं दूसरी ओर सरकार अपने सरकारी स्कूलों को बिना इन नियमों को पूरा किये बिना ही संचालित कर रहीं हैं।

     वास्तव में शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 के लागू होने के बाद से देश में न केवल शिक्षा का स्तर गिरा है बल्कि इस अधिनियम के कारण एक ओर जहां बच्चों के मन में बचपन से सामाजिक भेदभाव पैदा हो रहा है तो वहीं दूसरी ओर अपने बच्चों को शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत निजी स्कूलों में निःशुल्क पढ़ाने की चाह में अमीर से अमीर अभिभावक भी फर्जी प्रमाण-पत्रों का सहारा लेकर सरकारी धनराशि का दुरूपयोग कर रहे हैं। समय-समय पर समाचार पत्रों एवं न्यूज चैनलों में इस संबंध में समाचार भी प्रकाशित होते रहते हैं। अभी पिछले वर्ष रिलीज हुई 'हिन्दी मीडियम' फिल्म में भी इस सच्चाई को बखूबी दिखाया गया है।

     वास्तव में इस तरह की घटना ये बताने के लिए काफी है कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के तहत अनुचित लाभ उठाने की चाह में झूठ का सहारा लेने वाले हमारे देश के नागरिकों का नैतिक एवं चारित्रिक हनन भी हो रहा है। यही नहीं शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12(1)(ग) के तहत गरीब एवं कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए कक्षा 1 से 8 तक निजी असहायतित स्कूलों में आरक्षित 25 प्रतिशत सीटों की प्रतिपूर्ति की धनराशि फर्जी तरीके से प्राप्त करने के लिए घोटालों को अंजाम देने में कुछ निजी स्कूल भी पीछे नहीं हैं।

--अजय कुमार श्रीवास्तव
एम.ए. (राजनीति विज्ञान एवं समाज शास्त्र)
गोमती नगर, लखनऊ
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-26.11.2022-शनिवार.