साहित्यशिल्पी-देश हित में नहीं है ‘त्रुटिपूर्ण शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009-2

Started by Atul Kaviraje, November 27, 2022, 09:13:47 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "देश हित में नहीं है 'त्रुटिपूर्ण शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009' [आलेख]" 

   देश हित में नहीं है 'त्रुटिपूर्ण शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009' [आलेख] –2--
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     हमारे देश का संविधान देश के 6 से 14 वर्ष तक के प्रत्येक बच्चे को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का मौलिक अधिकार देता है। लेकिन शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 12(1)(ग) देश के कुछ चुनिंदा बच्चों को ही निजी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने का अवसर देती है, जो कि संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है। साथ ही यह कानून कमजोर और सक्षम वर्ग, सरकारों और निजी स्कूलों के बीच की खाई को पाटता नहीं बल्कि यह खाई और चौड़ी करता है। यह अत्यन्त ही दुःख की बात है कि जिस देश के लोगों का चरित्र दुनिया के लिए एक मिसाल हुआ करता था, उसमें बच्चों के शिक्षा के अधिकार के नाम पर बने हुए नियमों के कारण ना केवल देश के बच्चों में बचपन से ही भेदभाव की भावना पनपती जा रही है बल्कि देश के नागरिकों में भी नैतिक एवं चारित्रिक गिरावट आती जा रही है।

     एक ओर जहां अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में फ्री में पढ़ाने के लिए फर्जी प्रमाण-पत्रों का सहारा ले रहें हैं तो वहीं दूसरी ओर कुछ निजी स्कूल भी फीस प्रतिपूर्ति के नाम पर सरकारी धन को लूटने में लगे हुए हैं। इसके साथ ही इस अधिनियम के कारण देश के न्यायालय में दायर होने वाले मुकद्मों की संख्या को देखते हुए भी यह कहा जा सकता है कि इस अधिनियम में अनेक ऐसी कमियां है जिनके कारण कहीं निजी स्कूल न्यायालय की शरण ले रहें हैं तो कहीं अभिभावक न्यायालय में जाने को मजबूर है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के कारण एक ओर जहां सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता लगातार खराब होती जा रही है तो वहीं दूसरी ओर इस अधिनियम के अन्तर्गत मान्यता के लिए निर्धारित कई कठोर नियमों का पालन न कर पाने के कारण देश के लाखों निजी स्कूल लगातार बंद होते चले जा रहें हैं। ऐसे में आखिर देश भर के बच्चों को शिक्षा कैसे प्रदान की जायेगी, यह एक अत्यन्त ही चिन्ता का विषय भी है।

     हमारा मानना है कि किसी भी देश में बनने वाले नियम एवं कानून उस देश के नागरिकों एवं राष्ट्र हित को ध्यान में रखते हुए उनकी बेहतरी के लिए बनाये जाते हैं। परन्तु जिस तरह से शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के कारण देश में बच्चों-बच्चों में भेदभाव और जिसके कारण देश के नागरिकों के चरित्र में गिरावट आती जा रहीं हो, उस अधिनियम एवं नियम को न तो राष्ट्र के लिए सही माना जा सकता है और न ही देश के नागरिकों के लिए। वास्तव में यह एक ऐसा अधिनियम बन गया है जिसके कारण देश की एकता एवं अखण्डता प्रभावित होने के साथ ही हमारे देश के माननीय न्यायालय भी मुकद्मों के बोझ से प्रभावित हो रहें हैं। यहाँ सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने के बाद जिस उद्देश्य के साथ इस अधिनियम को देश में लागू किया गया था, यह अधिनियम उस उद्देश्य की पूर्ति भी नहीं कर पा रहा है। इस अधिनियम के लागू होने के बाद से जहां एक ओर सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता और भी अधिक खराब हुई है तो वही दूसरी ओर मान्यता की कठोर शर्तों को पूरा न कर पाने के कारण देश भर में निजी स्कूलों की संख्या भी लगातार कम होती जा रही है।

     यह इस देश के बच्चों का दुर्भाग्य है कि एक ओर जहां देश में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है तो वहीं दूसरी ओर देश में कम फीस में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने वाले छोटे-छोटे निजी स्कूलों के बंद होने से बच्चों के उनके शिक्षा प्राप्त करने के मौलिक अधिकार का भी उल्लघंन होता जा रहा है। सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता इस प्रकार की है जिसमें कि गरीब से गरीब आदमी भी अपने पढ़ने के लिए नहीं भेजना चाहता है जबकि सरकारी स्कूलों में उनके बच्चों को निःशुल्क शिक्षा के साथ ही फ्री में बैग, किताब एवं दोपहर का खाना तक दिया जा रहा है। अतः शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 को तुरन्त खत्म कर देना चाहिए।

     इसके साथ ही हमारा यह भी मानना है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21-ए के तहत देश के 6 से 14 वर्ष तक के आखिरी बच्चे तक को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करवाने के लिए सरकार को एक ओर जहां अपने सभी सरकारी ¬स्कूलों की गुणवत्ता को और भी अधिक बढ़ानी चाहिए तो वहीं दूसरी ओर विश्व के कई देशों में अत्यन्त लोकप्रिय हो रहे 'स्कूल वाउचर व्यवस्था' को भारत में भी लागू करने पर विचार करना चाहिए। वास्तव में स्कूल वाउचर व्यवस्था भारत की शिक्षा व्यवस्था के लिए भी एक सशक्त एवं प्रभावशाली माध्यम बन सकता है। जिसके द्वारा देश के 6 से 14 वर्ष तक के दुर्बल वर्ग एवं अलाभित समूह के आखिरी बच्चे तक को 'क्वालिटी एजुकेशन' आसानी से दी जा सकती है। इसलिए सरकार को सारे देश में स्कूल वाउचर व्यवस्था को लागू करने हेतु एक बार मंथन अवश्य करना चाहिए।

--अजय कुमार श्रीवास्तव
एम.ए. (राजनीति विज्ञान एवं समाज शास्त्र)
गोमती नगर, लखनऊ
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                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-27.11.2022-रविवार.