गुफ्तगू-गुफ्तगू ( दिसम्बर 2010)-अ

Started by Atul Kaviraje, November 27, 2022, 09:35:20 PM

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Atul Kaviraje

                                         "गुफ्तगू"
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मित्रो,

     आज पढते है, "गुफ्तगू" इस ब्लॉग का एक लेख. इस लेख का शीर्षक है- "गुफ्तगू ( दिसम्बर 2010)"

                            गुफ्तगू ( दिसम्बर 2010)--अ--
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     अपने ही शहर में बेगाने उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र इलाहाबाद में आयोजित मुशायरे का एक दृश्य इलाहाबाद उर्दू-हिन्दी अदब का अहम मरकज़ है। निराला, पंत, फ़िराक़, महादेवी, अकबर और राज इलाहाबादी जैसे साहित्यिक पुरोधाओं की कर्मस्थली है। देश का कोई भी अदबी सेमिनार, कवि सम्मेलन-मुशायरा इनके बिना अधूरा समझा जाता था। आज भी राष्ट्रीय स्तर के साहित्यकारों की टीम मौजूद हैं। ऐसे में जब भी किसी अखिल भारतीय कवि सम्मेलन या मुशायरे की रूपरेखा बनती है तो उसमें आमंत्रित किये जाने वाले कवियों और शायरों के नाम पर चर्चाएं शुरू हो जाती हैं। लेकिन आश्चर्य तब होता है, जब बाहर से आने वाले कवियों और शायरों की भीड़ में इस साहित्यिक नगरी से सिर्फ़ एक या दो लोग ही दिखाई देते हैं। जाहिर है काफी लोगों को निराश होना पड़ता है। सालभर में इलाहाबाद कम से कम दो आयोजन होते हैं। पहला उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र और दूसरा त्रिवेणी महोत्सव। सांस्कृतिक केंद्र के शिल्प मेले के अवसर पर होने वाले मुशायरे को लेकर उठा-पटक शुरू हो जाता है, यही हाल त्रिवेणी महोत्सव के दौरान होने वाले आयोजन पर रहता है। इस साल 2005, से पहले तक कवि-सम्मेलन और मुशायरा अलग-अलग होता आया है, मगर इस साल संयुक्त रूप से कवि सम्मेलन और मुशायरा हुआ, जिसमें इलाहाबाद से कवि कैलाश गौतम और शायर अतीक़ इलाहाबादी को ही आमंत्रित किया गया। इतनी बड़ी साहित्यिक नगरी से सिर्फ़ दो लोगों को ही आमंत्रित किया जाना, कईयों को नागवार गुजरी। नतीजतन वे अपने-अपने तरीके से गुस्से का इज़हार कर रहे हैं। सांस्कृतिक केंद्र में होने वाले कवि सम्मेलन और मुशायरे को जहां कुछ लोग 'अपसंस्कृति का जमावड़ा' कहकर परिभाषित करते हैं तो कुछ लोग यह मानते हैं कि इस तरह के आयोजन कराने वालों पर निर्भर करता है कि वे क्या करते हैं, यह केंद्र के लोगों की सोच समझ पर निर्भर करता है। सीनीयर पत्रकार और कवि सुधांशु उपाध्याय से इस बाबत बात करने पर कहते हैं,'इलाहाबाद हिन्दी-उर्दू का अहम मरकज है इसलिए यहां कवि सम्मेलन-मुशायरों की रूपरेखा बनाते समय संतुलन बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए।' वह यह भी जोड़ते हैं ' आमंत्रित किये जाने वाले कवियों और शायरों के स्तर से बिल्कुल समझौता नहीं करना चाहिए। निश्चित रूप से कैलाश गौतम और अतीक़ इलाहाबादी देश के मशहूर कवि और शायर हैं, लेकिन और लोगों का भी ध्यान रखना जरूरी है। विभिन्न मुशायरों में इलाहाबाद का प्रतिनिधित्व करने वाले डाक्टर असलम इलाहाबादी खासे नाराज़ दिखते हैं, 'एक साजिश के तहत अच्छे शायरों को नहीं रखा जाता। एक तो उर्दू का आयोजन ही समाप्त कर दिया गया, उपर से असली शायरों का नाम लिस्ट से गायब कर दिया गया।' इसके लिए शायरों को आगे आने की बात करते हुए डाक्टर असलम कहते हैं' सांस्कृतिक केंद्र के अधिकारियों को पता ही नहीं है कि नगर में अच्छा शायर और कवि कौन है।' इसके विपरीत बुद्धिसेन शर्मा कहते हैं, 'जो लोग आयोजन करते हैं, वही समझते हैं कि क्या सही है और क्या ग़लत है। किसी भी क़ीमत पर सभी को खुश नहीं किया जा सकता। जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, यदि उनको आमंत्रित कर लिया जाता तो बाकी लोग विरोध करते। सांस्कृतिक केंद्र अपनी जरूरत के मुताबिक कवियों और शायरों को आमंत्रित करता है, किसी को बुरा नहीं मानना चाहिए। इस बार के आयोजन को लेकर मशहूर संचालक नजीब इलाहाबादी काफी खफ़ा हैं। कहते हैं, 'सांस्कृतिक केंद्र पर उर्दू अदीबों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है, पहले उर्दू का मुशायरा अलग होता था इस बार संयुक्त कर दिया गया। जिसकी वजह से उर्दू के तीन-चार शायर कम हो गए। कार्यक्रम अधिकारी को इस बात का ख़्याल रखना चाहिए कि कवियों और शायरों में संतुलन हो, बराबरी हो।'

(राष्ट्रीय सहारा साप्ताहिक, के 18-24 दिसंबर 2005 अंक में प्रकाशित)

--इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
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--प्रस्तुतकर्ता editor : guftgu
(मंगलवार, नवंबर 23, 2010)
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             (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-गुफ्तगू-अलाहाबाद.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-27.11.2022-रविवार.