चतुर नार-कविता-चिड़िया

Started by Atul Kaviraje, November 27, 2022, 09:41:11 PM

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Atul Kaviraje

                                       "चतुर नार"
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मित्रो,

     आज पढते है, संगीता जांगीड, इनके "चतुर नार" इस ब्लॉग की एक कविता. इस कविता का शीर्षक है- "चिड़िया"

                                          चिड़िया--
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बचपन में
मेरे आँगन में बहुत आती थी
याद है मुझे
ट्युब लाइट पर
रोशनदान पर
तिनका तिनका लाकर घोसला बनाती थी
अपने बच्चों को
अपनी नन्ही चोंच से खाना खिलाती थी
बच्चों के पर निकलते ही
वे फुदकने लगते थे
कभी कभार नीचे गिर जाते थे
तब उन बच्चों को
हम बच्चे
आटा घोलकर खिलाया करते थे
उनकी माँ चिड़िया को बड़ा गुस्सा आता था
बच्चें बड़े हो उड़़ जाते थे
घोसलें खाली हो जाते थे
लेकिन आँगन में चिड़िया रोज आती थी
हम कविताएं भी चिड़ियों की गाते थे
खेल में भी चिड़िया होती थी
तोता उड़़, चिड़िया उड़
खेलकर अपना बचपन जीते थे
गुलजार था बचपन इन चिड़ियों से
लेकिन अब
न घोसले है, न आँगन है और ना ही चिड़िया
अब बचपन भी कहाँ गुलज़ार है

--आत्ममुग्धा
(Friday, March 19, 2021)
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              (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-संगीता जांगीड.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-27.11.2022-रविवार.