सुख सागर-कविता-कान्हा मेरे घर आजा !!

Started by Atul Kaviraje, November 27, 2022, 09:46:43 PM

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Atul Kaviraje

                                      "सुख सागर"
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मित्रो,

     आज पढते है, "सुख सागर" इस ब्लॉग की एक कविता. इस कविता का शीर्षक है- "कान्हा मेरे घर आजा !!"

                                 कान्हा मेरे घर आजा !!--
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कृष्ण कन्हईया मोरा
बंसी बजईया मोरा,
दर्श  दिखा जा
कान्हा मेरे घर आजा !!

बाट निहारे तोरी
आँखें थक गयी मोरी,
मोसे प्रीत निभा जा,
आजा मेरे घर आजा!
दर्श  दिखा जा
कान्हा मेरे घर आजा !!

जब मैं मटकी उठाऊँ
और पानी लेने जाऊं,
अपनी सूरत दिखा जा,
मेरे मन को लुभा जा!!
दर्श  दिखा जा
कान्हा मेरे घर आजा !!

क्यों खेलो आँख मिचोली,
सखियाँ करें है  ठिठोली,
कानों में रस टपका जा,
अपनी बंसी सुना जा!!
दर्श  दिखा जा
कान्हा मेरे घर आजा !!

तुम से वियोग की पीड़ा,
काटे जैसे हो कोई कीड़ा,
प्यारी मूर्त दिखा जा,
ढारस दिल को बंधा जा!
दर्श  दिखा जा
कान्हा मेरे घर आजा !!

--सुख सागर
(Tuesday, May 31, 2011)
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               (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-सुख सागर.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-27.11.2022-रविवार.