साहित्यशिल्पी-धन उपार्जन और आपका विवेक- [आलेख] –2

Started by Atul Kaviraje, November 29, 2022, 09:09:21 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "धन उपार्जन और आपका विवेक- [आलेख]" 

                  धन उपार्जन और आपका विवेक- [आलेख] –2--
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     मामूली आमदनी के लोग जब अपनी स्त्रियों के बक्से कीमती साड़ियों से भरते हैं और जेवरों में धन गँवाते हैं, तब उसके पीछे यही ओछापन काम करता है कि ऐसी सजी-धजी हमारी औरत को देखकर हमें अमीर मानेंगे। पुरुष साड़ी, जेवर तो नहीं पहनते पर सूट-बूट घड़ी, छड़ी उनकी भी कीमती होती है, ताकि मित्रों के आगे बढ़-चढ़कर शेखी मार सकें। विवाह-शादियों के वक्त यह ओछापन हद दर्जे तक पहुँच जाता है। स्त्रियाँ ऐसे कपड़े लटकाये फिरती हैं, जैसे सिनेमा, नाटक के नट लोग पहनते हैं। बारातियों का औघड़पन देखते ही बनता है। ऐसा ठाठ-बाठ बनाते हैं मानों कोई बड़े मिल मालिक, जागीरदार अफसर अथवा सेठ-साहूकार हों। जानने वाले जब जानते हैं कि जरा-सी आमदनी वाला यह ढोंग बनाये फिरता है तो हर कोई असलियत समझ जाता है और दो ही अनुमान लगाता है या तो यह कर्जदार रहता होगा या बेईमानी से कमाता होगा। यह दोनों ही बातें बेइज्जती की हैं। सोचा यह गया था कि ठाठ-बाठ वाले बाबू को गैर सरकारी नौकरी नहीं मिलती। मालिक जानता है, इतना वेतन तो ठाठ-बाठ में ही उड़ जाएगा, फिर बच्चों को खिलाने के लिए इस हमारे यहाँ चोरी का जाल फैलाना पड़ेगा। यही बात स्त्रियाँ के सम्बन्ध में है। बहुत फैशन बनाने वाली महिलायें दो छाप छोड़कर जाती हैं या तो इनके घर में अनुचित पैसा आता है अथवा इनका चरित्र एवं स्वभाव ओछा है। यह दोनों ही लाँछन किसी कुलीन महिला की इज्जत बढ़ाते नहीं घटाते हैं। घर परिवार में यह सज-धज की प्रवृत्ति मनोमालिन्य पैदा करती है। अपव्यय हर किसी को बुरा लगता है। जो पैसा परिवार के शिक्षा, चिकित्सा, व्यवसाय, विनोद, पौष्टिक आहार आदि में लग सकता था, उसे फैशन में खर्च किया जाने लगे तो प्रत्यक्षतः परिवार के अन्य सदस्यों की सुख का अपहरण है। ठाठ-बाठ की कोई बाहर से प्रशंसा कर दे किसी को कुछ समय के लिये भ्रम में डाल दे यह हो सकता है पर साथियों में घृणा और ईर्ष्या ही पैदा होगी, वहाँ इज्जत बढ़ेगी नहीं घटेगी। बढ़े चढ़े खर्चों की पूर्ति के लिए अवांछनीय मार्ग ही अपनाने पड़ेंगे। कर्जदार और निष्ठुर जीवन जीना पड़ेगा। आमदनी सही भी है तो भी उसे व्यक्तिगत व्यय में सामाजिक स्तर के अनुरूप ही खर्च करना चाहिये। अधिक खर्च लोक-मुगल का हक मारना है।

     अच्छा हो हम समझदारी और सज्जनता से भरा हुआ, सादगी का जीवन जिये अपनी बाह्य सुसज्जा वाले खर्च को तुरन्त घटा दें और उस बचत से अपनी-अपने परिवार की तथा समाज की वास्तविक आवश्यकताओं को पूरा करने में लगाने लगें। सादगी सज्जनता का प्रतिनिधित्व करती है। जिसका देश विन्यास सादगी पूर्ण है, उसे अधिक प्रामाणिक एवं विश्वस्त माना जा सकता है। जो जितना ही उद्दीपन दिखायेगा, समझदारों की दृष्टि में उतना ही इज्जत गिरा लेगा। इसलिये उचित यही है कि हम अपने वस्त्र सादा रखें, उनकी सिलाई भले मानसी जैसी करायें, जेवर न झनकारें, नाखून और होंठ न रंगे, बालों को इस तरह न सजाये, जिससे दूसरों को दिखाने का उपक्रम करना पड़े। नर-नारी के बीच मानसिक व्यभिचार का बहुत कुछ सृजन इस फैशन-परस्ती में होता है।

     सादगी-शालीनता और सज्जनता का सृजन करती है। उसके पीछे गम्भीरता और प्रामाणिकता, विवेक शीलता और बौद्धिक परिपक्वता झाँकती है। वस्तुतः इसी में इज्जत के सूत्र सन्निहित हैं। सादगी घोषणा करती है कि यह व्यक्ति दूसरों को आकर्षित या प्रभावित करने की चालबाजी नहीं, अपनी वास्तविकता विदित करने में सन्तुष्ट है। यही ईमानदारी और सच्चाई की राह है। यह आमदनी बढ़ाने का भी एक तरीका है फिजूलखर्ची विदित करने में संतुष्ट है। यही ईमानदारी और सच्चाई की राह है। यह आमदनी बढ़ाने का भी एक तरीका है। फिजूलखर्ची रोकना अर्थात् आमदनी बढ़ाना। विवाह-शादियाँ उत्सव, आयोजन, प्रीति-भोजों और अमन-चलनों में अपना पैसा बुरी तरह कटता है, उसके पीछे यही ओछी प्रवृत्ति काम करती है कि जितना अधिक पैसा खर्च होगा, उतना ही अमीरी का रौब जमेगा और उसी हिसाब में इज्जत बढ़ेगी। समय आ गया कि इस बाल-बुद्धि को छोड़ कर प्रौढ़ता का दृष्टिकोण अपनाया जाय। हम गरीब देश के निवासी हैं। सर्वसाधारण को सामान्य सुसज्जा और परिमित खर्च के काम चलाना पड़ता है। अपनी वस्तुस्थिति यही है। अपने करोड़ों भाई-बहिनों की पंक्ति में ही हमें खड़े होना चाहिये और उन्हीं की तरह रहन-सहन का तरीका अपनाना चाहिये। इस समझदारी में ही इज्जत पाने के सूत्र सन्निहित हैं। फैशन परस्ती और अपव्यय की राह अपनाकर हम आर्थिक संकट को तो निमन्त्रित करते ही हैं।

     स्वच्छता के साथ जुड़ी हुई सादगी अपने आपमें एक उत्कृष्ट स्तर का फैशन है। उसमें गरीबी का नहीं महानता का पुट है। सादा वेश भूषा और सुसज्जा वाला व्यक्ति अपनी स्वतन्त्र प्रतिभा और स्वतन्त्र चिन्तन का परिचय देता है। भेड़चाल को तोड़कर जो विवेकशीलता का रास्ता अपनाता है, वह बहादुर है। अपनी संस्कृति और परम्परा के अनुरूप यदि हमारा आचरण है तो कोई भी परखने वाला हमें दूरदर्शी, विवेकशील एवं दृढ़ चरित्र ही कहेगा। सादगी हमें फिजूल-खर्ची से बचाकर आर्थिक स्थिरता में ही समर्थ नहीं करती वरन् हमारी चारित्रिक दृढ़ता भी प्रमाणित करती है। अकारण उत्पन्न होने वाली ईर्ष्या और लाँछना से बचने का भी यही सल मार्ग है।

--पंकज "प्रखर "
कोटा (राजस्थान)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-29.11.2022-मंगळवार.