साहित्यशिल्पी-लोकमाता अहिल्या बाई होल्कर अपनी आत्म शक्ति दिखलाओ ! [आलेख] –2

Started by Atul Kaviraje, December 01, 2022, 09:14:28 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "31 मई को महारानी अहिल्या बाई होल्कर की जयन्ती के अवसर पर विशेष लेख बनो, लोकमाता अहिल्या बाई होल्कर अपनी आत्म शक्ति दिखलाओ! [आलेख]" 

        31 मई को महारानी अहिल्या बाई होल्कर की जयन्ती के अवसर पर विशेष लेख बनो, लोकमाता अहिल्या बाई होल्कर अपनी आत्म शक्ति दिखलाओ! [आलेख] –2--
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     होलकर वंश के मुख्य कर्णधार श्री मल्हार राव होलकर का जन्म 16 मार्च, 1693 में हुआ। इनके पूर्वज मथुरा छोड़कर मराठा के होलगाॅव में बस गये। इनके पिताश्री खण्डोजी होलकर गरीब परिवार के थे इसलिए मल्हार राव होलकर को बचपन से ही भेड़ बकरी चराने का कार्य करना पड़ा। अपने पिता के निधन के पश्चात् इनकी माता श्रीमती जिवाई को अपने बेटे का भविष्य अन्धकारमय लगने लगा। और वह अपने पुत्र को लेकर अपने भाई भोजराज बारगल के यहाॅ आ गयी। अब वह अपने मामा की भेड़े चराने जंगल में जाने लगे। एक दिन बालक के थक जाने पर उसे नींद आ गयी तो पास के बिल से एक सांप ने आकर अपने फन से उनके मुख पर छाया कर दी। जिसे देखकर उनकी माता काफी डर गयी परन्तु सांप बिना कोई हानि पहुॅचायें अपने बिल में पुनः वापिस चला गया। इस घटना के बाद उनसे भेड़ चलाने का काम छुड़ा दिया और उन्हें सेना में भर्ती करा दिया गया। सेना में भर्ती होने के बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और वे अत्यन्त साहसी और वीर योद्धा रहे।

     एक दिन मल्हार राव होलकर चैड़ी गांव से होकर जा रहे थे। रास्ते में पड़ने वाले शिव मंदिर में विश्राम करने के लिए रूके, तो उन्होंने उस मंदिर में अहिल्या बाई की सादगी, विनम्रता और भक्ति का भाव देखकर काफी प्रभावित हुए। अहिल्या बाई मंदिर में जाकर प्रतिदिन पूजा करती थी। मल्हार राव ने उसी समय उन्हें पुत्र वधु बनाने का निर्णय लिया और सन् 1735 में उनका विवाह खण्डेराव होलकर के साथ सम्पन्न हुआ। विवाह के पूर्व खण्डेराव होलकर काफी उदण्ड एवं गैर जिम्मेदार थे परन्तु विवाह के बाद राजकाज में रूचि लेनी शुरू कर दी। उनके कार्य व्यवहार में काफी बदलाव आ गया।

     सन् 1745 में पुत्र मालेराव एवं 1748 में पुत्री मुक्ताबाई का जन्म हुआ। मल्हार राव होलकर अपनी पुत्र वधु को अपनी बेटी की तरह ही मानते थे और उन्हें सैनिक शिक्षा, राजनैतिक, भौगोलिक तथा सामाजिक कार्यो में साथ रखते तथा सहयोग भी करते थे। इसी प्रकार कुशल जीवन व्यतीत हो रहा था कि अचानक 1754 में जाटों के साथ युद्ध भूमि में खण्डेराव होलकर वीर गति को प्राप्त हुए। इस शोक का समाचार अहिल्या बाई एवं मल्हार राव होलकर सुनकर एकदम टूट गये। क्योंकि अहिल्या बाई परम्परा के अनुसार सती होने जा रही थी। इस पर मल्हार राव होलकर ने अपनी पुत्र वधू से अनुरोध किया कि बेटी मेरा जीवन तेरे निर्णय पर ही आधारित है। क्योंकि मेरा बेटा तू ही है, अगर लोक लाज के डर से तू सती हो गयी तो इस बुढापे में मुझे और इतने बड़े राज्य को कौन सम्भालेगा। क्या मैंने इसलिए तुझे अपना बेटा और बेटी का प्यार दिया है। इस अनु-विनय को ध्यान में रखते हुए। उन्होंने सती न होकर राज्य/सामाजिक कार्यो में रूचि लेने का निर्णय लिया और सादगीपूर्ण ढंग से देश की सेवा का संकल्प कर 23 अगस्त, 1766 में अपने पुत्र मालेराव का राजतिलक कर दिया परन्तु वह एक सुयोग्य शासक नहीं बन सके क्योंकि अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाहन सही ढंग से नहीं कर रहे थे। जिससे प्रजा खुश नहीं थी। कुछ दिनों बाद युवराज को बुखार आ जाने के कारण उनकी हालत दिन पर दिन बिगड़ने लगी और काफी उपचार करने के पश्चात् भी वे ठीक न हो सके। 22 वर्ष की आयु में ही उनका निधन हो गया। उन्होंने मात्र 10 माह शासन किया अपने पति व पुत्र की मृत्यु को देखकर दुःखी रहने लगी।

     इसी प्रकार के बहुत से रोचक प्रसंग इतिहास में वर्णित है लोकमाता देवी अहिल्या बाई ने सबसे अधिक धार्मिक स्थलांे का निर्माण कराया। इसके अतिरिक्त अन्य होलकर शासकों ने भी बहादुरी के साथ सराहनीय कार्य किये। जैसे- महाराजा तुकोजी राव होलकर ने सामाजिक सुधार के अनेक नियम बनायें। कानून का अध्ययन किया और उसके पश्चात् हिन्दू विधवा-पुर्न विवाह, एकल विवाह कानून, बाल विवाह प्रतिबन्धक कानून लागू कराया एवं प्रजा को रूढ़ियों से मुक्त भी कराया। इनके प्रथम पुत्र महावीर जशवंत राव होलकर भी साहसी और पराक्रमी थे। उन्होंने जाट राजा रणजीत सिंह के साथ मिलकर 18 दिनों तक अंग्रेजों से युद्ध किया तथा अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये। इनका मुख्य उद्देश्य अंग्रेजी हुकुमत से मुक्ति तथा हिन्दू धर्म को संरक्षण दिलाना था। इतिहासकारों के अनुसार 26 मई, 1728 से 16 जून, 1948 तक होलकरों का शासन काल रहा है। अर्थात कुल 220 वर्ष 22 दिन होलकरों ने शासन किया।

--प्रदीप कुमार सिंह
स्वतंत्र पत्रकार
रायबरेली रोड, लखनऊ
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-01.12.2022-गुरुवार.