साहित्यशिल्पी-जीवन का सिंचन करते “संस्कार”- [आलेख]-अ-

Started by Atul Kaviraje, December 03, 2022, 10:00:42 PM

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Atul Kaviraje

                                     "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "जीवन का सिंचन करते "संस्कार" [आलेख]" 

                  जीवन का सिंचन करते "संस्कार"- [आलेख]--अ--
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     संस्कार मनुष्य के कुल की पहचान होते है प्रत्येक परिवार के अच्छे बुरे संस्कार व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करते है और आगे चलकर हमारी भावी सोच को भी प्रभावित करते है | प्रत्येक मनुष्य के लिये जीवन में दो पहलू हैं एक भला दूसरा बुरा अब मनुष्य कौन से पहलू को अपनाता है ये उसके संस्कार पर निर्भर करता है। कई बार लोग गलत रास्ते पर जाते-जाते वापस लौट आते है ये उनके संस्कार का प्रभाव होता है | जो जिस मार्ग का अनुसरण करेगा उसी के आधार पर उसके जीवन का मूल्यांकन होता है। बुराई, जड़ता मनुष्य को मनुष्यत्व से नीचे गिराती हैं और भलाई, सहृदयता, सौजन्य उसे मनुष्य बनाते हैं, यही उसके चेतना धर्म के प्रतीक हैं।

     मनुष्य बनने के लिये हमारी चेतना ऊर्ध्वगामी हो। निम्नगामी न हो परन्तु आज हो इसके विपरीत रहा है लोग रात दिन हाय- हाय कर रहे हैं धन की, प्रतिष्ठा की, ऐश्वर्य कीर्ति की, सत्ता हथियाने की, अपने को बड़ा सिद्ध करने की ये प्रवृत्ति निम्नगामी है और इनसे ऊपर उठकर त्याग, सन्तोष, संयम, सदाचार शील, क्षमा, सत्य, मैत्री, परमार्थ आदि गुणों को जीवन में विकसित करना ऊर्ध्वगामी चेतना के लक्षण हैं।

     मानव जब जन्म लेता है तो उसमे किसी भी प्रकार की विकृति नही होती है वो एक कोरे कागज़ के समान होता है | इस जीवन रुपी कोरे कागज़ पर वो क्या लिखता है ये उस व्यक्ति के संस्कारों और संगत पर निर्भर करता है| अच्छी संगति मनुष्य में श्रेष्ठ गुणों का विकास कर उसे लोगों के ह्रदय में बैठा देती है वहीं दूसरी और कितना भी प्रभावशाली व्यक्ति हो उसके संगति यदि निकृष्ट है तो वह व्यक्ति समाज के साथ-साथ अपना भी अहित कर बैठता है| इसी परिप्रेक्ष में अपने विध्यार्थी समय में अपने अध्यापक से एक कहानी सुनी थी उस कहानी को आप लोगों के साथ साझा करना चाहूँगा|

     एक सम्पन्न कुल में दो भाई थे। उन दोनों की शिक्षा- दीक्षा एक ही गुरु द्वारा सम्पन्न हुई ,दोनों ही में समान संस्कारों का सिंचन किया गया | जब वे दोनों गुरुकुल की शिक्षा समाप्त करके समाज में अपना स्थान निश्चित करने का प्रयास करने लगे ऐसे समय में एक भाई को बुरे वातावरण में पड़ जाने से जुएँ की लत पड़ गई क्यौंकी वह योग्य पढ़ा लिखा और विद्वान था, साथ ही सत्यवादी भी और जुआरियों की तरह उसमें चालाकी घोखादेही भी न थी इसी कारण वह हार जाता। उसने अपने हिस्से की सारी सम्पत्ति जुआ में लुटा दी और फिर अभावग्रस्त जीवन बिताने लगा। थोड़े समय बाद उसका जीवन स्तर और नीचे गिरा और उसे चोरी और लूट की लत भी पढ गयी । उसकी बुराइयों ने समाज में उसकी छवि मलिन कर दी और वह लोगों की नज़रों में खटकने लगा | लोग उसके मुँह पर बुरा भला कहते।

पंकज "प्रखर "
कोटा (राज.)
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                     (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-03.12.2022-शनिवार.