साहित्यशिल्पी-जीवन का सिंचन करते “संस्कार”- [आलेख]-ब-

Started by Atul Kaviraje, December 03, 2022, 10:03:01 PM

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Atul Kaviraje

                                      "साहित्यशिल्पी"
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मित्रो,

     आज पढते है, "साहित्यशिल्पी" शीर्षक के अंतर्गत, सद्य-परिस्थिती पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण लेख. इस आलेख का शीर्षक है- "जीवन का सिंचन करते "संस्कार" [आलेख]" 

                   जीवन का सिंचन करते "संस्कार"- [आलेख]--ब--
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     वहीं दूसरा भाई लोगों की आँखों का तारा था। वह समाज की भलाई के कामों में हाथ बँटाता ,सदाचार का जीवन बिताकर जितनी दूसरों की भलाई हो सकती थी उतनी करता। लोग उसकी बड़ाई करते और उसे घेरे ही रहते। एक दिन पहले भाई का देहान्त हो गया। लोग कहने लगे अच्छा हुआ मर गया तो धरती से एक दुष्ट कम हुआ इसी प्रकार तरह- तरह से उसकी बुराई करने लगे | कुछ समय बाद दूसरे सज्जन भाई का भी देहावसान हुआ तो सारे नगर में शोक छा गया स्त्री- पुरुष रोने लगे उसके उपकारों एवम् उसकी सज्जनता को याद करके, उसके नाम पर समाज में कई संस्थाएँ खोली गई। समाचार पत्रों में उसके नाम पर शोक प्रकट किया गया।

     एक ही कुल, एक ही माता-पिता ,एक सी परिस्थिति ,एक ही वातावरण फिर भी एक भाई को दुनिया कोसती है और दूसरे की रात- दिन बड़ाई करती हुई श्रद्धा प्रकट करती थी ,यह क्यों ? इसका एक ही उत्तर है कि पहले भाई ने अपने जीवन में मानवोचित गुणों का विकास कर समाज में श्रेष्ठ योगदान दिया जबकि दुसरे भाई ने अच्छी शिक्ष दीक्षा होने के बाद भी बुरी संगत होने के कारन समाज को अपनी विकृत सोच से प्रभावित किया | पहले ने अपने जीवन में मनुष्य धर्म को भूल कर पाप का आचरण किया ,हैवानियत का रास्ता अपनाया जबकि दूसरे ने इंसान के पुतले में जन्म लेकर इन्सान बनने की कोशिश की।

     राम चरित मानस में आता है की जब राम को वनवास हुआ तो पूरी अयोद्ध्या ने आंसू बहाए यहाँ तक की लोग अपनी धन सम्पत्ति और घर परिवार छोड़कर वन में जाने तक को तयार हो गये उसका था की राम ने अपने जीवन में मनुष्यत्व का अवलंबन लिया और अपने श्रेठ कृतित्व से समाज और जन कल्याणकारी कार्य किये आज भी राम को याद करके हमारा मन अहोभाव से भर जाता है | वहीं दूसरी और रावण जो अपने समय का प्रकांड विद्वान् और शक्ति शाली सम्राट था वेदवेत्ता और ग्यानी इतना की जिससे ब्रह्मा और शिव भी प्रभावित थे उसने अपनी तपस्या से तीनो लोकों को अपने आधीन कर लिया था | रावण एक महान विद्वान ,वैज्ञानिक ,शक्तिशाली राजा एव स्वर्ण नगरी का मालिक था समस्त संसार पर उसका प्रभाव था, फिर भी लोग हर साल उसे जलाते है ऐसा क्यों करते है? उत्तर स्पष्ट है। राम ने मनुष्यत्व की रक्षा की और रावण ने मनुष्य बनकर भी मनुष्यता से गिर कर पापाचरण किया लोगों को सताया ,, अंहकार को बढ़ाया, अपनी नीयत को खराब किया ।। राम ने घर- घर जाकर मानवता का भरण पोषण और सेवा की।

     सम्पत्तिशाली, नेता, विद्वान्, लेखक, सम्पादक, शासक, शक्ति सम्पन्न, वैज्ञानिक होना अलग बात है और मनुष्य बनना दूसरी बात है। इन सबके साथ यदि मनुष्यता का सम्बन्ध नहीं है तो यह सब पत्थर पर मारे गये तीर की भाँति बेकार सिद्ध होंगे । यदि उक्त भौतिक सम्पत्तियाँ प्राप्त करके भी मनुष्यत्व नहीं है तो सब व्यर्थ हैं, केवल बाहरी बनावट मात्र हैं। जैसे लाश को बाहर से अच्छी तरह सजा कर उसे जीवित सिद्ध करना, किन्तु आखिर वह लाश ही रहेगी। चेतना उसे स्वीकार नहीं करेगी। उसी प्रकार बाहरी सोंदर्य का इतना महत्व नही है जितना की भीतरी सोंदर्य का हैं। हम इस प्रकार के बाह्य सौन्दर्य के भ्रम से बचकर अपने अंदर मनुष्यत्व के गुणों का अधिकाधिक विकास करना चाहिए जिससे की हमारा रावण, कुम्भकरण जैसा पतन न हो बल्कि हम मानवीय गुणों का विकास कर दुसरो में भी इन गुणों का विकास कर सके और समाज एवं राष्ट्र को श्रेष्ठ बना सकने में अपन योगदान दे सकें |

पंकज "प्रखर "
कोटा (राज.)
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                    (साभार एवं सौजन्य-संदर्भ-साहित्यशिल्पी.कॉम)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-03.12.2022-शनिवार.