लफ़्ज़ों का खेल-गृह प्रवेश-मचल के जब भी आँखों से

Started by Atul Kaviraje, December 04, 2022, 09:33:51 PM

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Atul Kaviraje

                                      "लफ़्ज़ों का खेल"
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मित्रो,

     आज सुनते है, "लफ़्ज़ों का खेल" इस शीर्षक के अंतर्गत, "भूपेंद्र सिंह" की आवाज मे "गृह प्रवेश" फिल्म का गीत.

                                 "मचल के जब भी आँखों से"
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मचल के जब भी आँखों से
छलक जाते हैं दो आँसू
सुना है आबशारों को
बड़ी तक़लीफ़ होती है
मचल के जब भी आँखों से...

ख़ुदा-रा अब तो बुझ जाने दो
इस जलती हुई लौ को
चराग़ों से मज़ारों को
बड़ी तक़लीफ़ होती है
मचल के जब भी आँखों से...

कहूँ क्या वो बड़ी मासूमियत से
पूछ बैठे हैं
क्या सचमुच दिल के मारों को
बड़ी तक़लीफ़ होती है
मचल के जब भी आँखों से...

तुम्हारा क्या, तुम्हें तो
राह दे देते हैं काँटे भी
मगर हम ख़ाक-सारों को
बड़ी तक़लीफ़ होती है
मचल के जब भी आँखों से...

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मचल के जब भी आँखों से - Machal Ke Jab Bhi Aankhon Se
Movie/Album: गृह प्रवेश (1979)
Music By: कानू रॉय
Lyrics By: गुलज़ार
Performed By: भूपेंद्र सिंह
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               (साभार एवं सौजन्य-हिंदी लैरिकस प्रतीक.ब्लॉगस्पॉट.कॉम)
                       (संदर्भ-Lyrics In Hindi-लफ़्ज़ों का खेल)
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-----संकलन
-----श्री.अतुल एस.परब(अतुल कवीराजे)
-----दिनांक-04.12.2022-रविवार.